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नद्यादि पूरापगमे देशे तत्रातिपिच्छिले । मृदुश्लक्ष्णा पंकरूपा सप्तमी पनकाभिधा ॥७॥युग्मं।
इत्यर्थतः प्रज्ञापना वृत्तौ ॥ वे सात-सात भेद इस प्रकार हैं - १- काला, २- हरा, ३- पीला, ४- लाल, ५- सफेद,६- किसी देश में पांडुरंग होता है और ७- नदी आदि की बाढ़ जा जाने से अत्यन्त नमी वाला प्रदेश हो गया हो उसकी कोमलता, चिकना, पंकरूप पनक' नाम के होते हैं । (६-७)
इनका भावार्थ पनवना सूत्र की वृत्ति में कहा है।
उत्तराध्ययन वृत्तौ तु- "पांडुत्ति ॥ पांडु पांडुरा इषत् शुक्लत्ववती इष्यर्थः। इति वर्ण भेदेन षड्विधत्वं उक्तम्। इह च पांडुर ग्रहणं कृष्णादि भेदानामपिस्व स्थाने भेदान्तरसम्भवसूचकम्।पनकः अत्यन्त सूक्ष्मरजोरूपः स एवं मृत्तिका पनक मृत्तिका। पनकस्य च नभसि विवर्त्तमानस्य लोके पृथ्वीत्वेन रूढत्वात् भेदेन उपादानम् ॥ इत्यादि उक्तम् ॥" __ श्री उत्तराध्ययन सूत्र की वृत्ति में तो इस तरह कहा है कि- पांडु अर्थात् पांडुर अर्थात् कुछ श्वेत-सफेद होता है। इस प्रकार पृथ्वी के अलग-अलग रंग को लेकर छः भेद कहे हैं। यहां 'पांडुर' कहने से इस तरह सूचना होती है कि- कृष्ण आदि भेदों का भी अपने-अपने स्थान में अन्य भेद संभव होता है। पनक अर्थात् अत्यन्त सूक्ष्म रज़रूप मिट्टी-मृत्तिका है। आकाश में बिखरे हुए ‘पनक' का लोक में पृथ्वीत्व ऐसा रूढ़ अर्थ हो गया है। इससे इसे पृथ्वी का एक भेद गिना है। इत्यादि !
चत्वारिंशत् खरायाश्च भेदाः प्रज्ञापिताः क्षितेः । ....अष्टादश मणीभेदास्तथा द्वाविंशतिः परे ॥८॥
खर अर्थात् कर्कश-कठोर पृथ्वी के चालीस भेद कहे हैं । उसमें अठारह भेद मणि के हैं और बाईस भेद अन्य हैं। (८)
गोमेद्यकांक स्फटिकलोहिताक्षा हरिन्मणि । . षष्टो मसार गल्ल स्यात्सप्तसो भुजमोचकः ॥६॥
इन्द्र नीलश्चन्दनश्च गैरिको हंसगर्भकः । सौगन्धिक श्च पुलकस्ततश्चन्द्र प्रभाभिधः ॥१०॥