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________________ (३४४) सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीवों का १- कषाय, २- वेदना और ३- मृत्यु का- इस तरह तीन समुद्घात कहे हैं। (१००) ___ 'इति समुद्घाता ॥१२॥' यह बारहवां द्वार समुद्घात का है। एके न्द्रियेषु सर्वेषु विकलेन्द्रियके षु च । . संख्येयायुर्गर्भजेषु तिर्यक्पंचेन्द्रियेष्वपि ॥१०१॥ तादशेष्वेव मत्र्येषु तेषु संमुर्छि मेषु च । एतेविपद्योत्पद्यन्ते सूक्ष्मा दशविधा अपि ॥१०२॥युग्मं। तेजोऽनिलौ तु नवरं नोत्पद्यते स्वभावतः । मनुष्येष्विति गच्छन्ति ते पूर्वोक्तेषु तान्विना ॥१०३॥ इति गति ॥३॥ . .. ये दस प्रकार के सूक्ष्म जीव मृत्यु प्राप्त करते हैं तब सर्व एकेन्द्रिय में, विकेलेन्द्रिय में, संख्यात आयुष्य वाले और गर्भज पंचेन्द्रिय तिर्यंचो में, इसी तरह मनुष्यों में तथा संमूर्छित मनुष्यों में उत्पन्न होता है। अन्तर इतना है कि तेउकाय और वायुकाय स्वाभाविक रूप में मनुष्यों में उत्पन्न नहीं होता, अतः वह मनुष्य के बिना की पूर्वोक्त गति में जाता है। (१०१ से १०३) यह तेरहवां द्वार गति है।॥१३॥ उत्पद्यन्ते च पूर्वोक्ताः सूक्ष्मैकाक्षेषु तेऽखिलाः । स्वस्वकर्मानुभावेन गरिष्टे न वशीकृताः ॥१०॥ पूर्व में कहा है वह सब जीव अपने- अपने भारी कर्म के अनुभाव के आधीन बने सूक्ष्म एकेन्द्रिय में उत्पन्न होते हैं। (१०४) . .. नारका निर्जरास्तिर्यग् नराश्चासंख्यजीविनः । . . नैषा सूक्ष्ममेषु गमनं न चाप्यागमनं ततः ॥१०॥ नारकी , देव तथा असंख्यात आयुष्य वाले तिर्यंच और मनुष्य सूक्ष्मता में गमन नहीं करते। वैसे वहां से आते भी नहीं हैं। (१०५) गतिष्वेवं चतसृषु संक्षेपात्ते विवक्षिताः । द्विगतयो द्वयागतयो भवन्ति सूक्ष्मदेहिनः ॥१०६॥
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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