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________________ (२७७) ओजस आहार अनाभोग ही होता है जबकि लोम आहार में भोग भी होता है, नहीं भी होता। तथा एकेन्द्रिय के लोम आहार में भोग नहीं होता। (११२६) तथोक्तं संग्रहणी वृत्तौ-"एकेन्द्रियाणाम्अतिस्तोका पटुमनोद्रव्य लब्धीनाम् आभोगमान्द्यात् वस्तुतः अनाभोगनिवर्तित एव॥"यदागमः "एगेंदियाणां नोआभोग निव्वत्तिए अणाभोग नित्वत्तिए।" इति॥' संग्रहणी की वृत्ति में कहा है कि- 'अति अल्प और आपटु-मनोद्रव्य की लब्धि वाले एकेन्द्रिय प्राणी में आभोग की मंदता होती है इससे वस्तुतः उनका आहार अनाभोग ही होता है।' इस विषय में आगम भी कहा है कि- 'एकेन्द्रिय प्राणी को आभोग आहार नहीं है, अनाभोग है।' द्विक्षणोनो भव क्षुल्लो जघन्या काय संस्थितिः । आहारित्वे गरिष्ट्रा च काल चक्राण्यसंख्यशः ॥११३०॥ इति आहारः ॥२६॥ आहारक प्राणी जघन्य काय स्थिति क्षुल्लक भव (छोटा जन्म) करता है तो दो क्षण कम समय-इतना कम समय लगता है। जबकि उत्कृष्ट असंख्य काल चक्र का समय लग जाता है। (११३०) . इस तरह उन्तीसवां द्वार आंहार का स्वरूप पूर्ण हुआ। अथ गुणः॥ ... : - गुणानाम गुणस्थानान्यमूनि च चतुर्दश । . वच्मि स्वरूपमेतेषामन्वर्थं व्यक्ति पूर्वकम् ॥११३१॥ अब तीसवें द्वार गुण के विषय में कहते हैं - गुण अर्थात् गुण स्थान । ये गुण स्थानं चौदह होते हैं । इनका प्रत्येक का स्वरूप में अर्थ के अनुसार कहता हूँ। (११३१) तथाहुः - मित्थे सासणमीसे अविरय देसे पमत्तअपमत्ते । नियट्टीअनियट्टी सुहुमुवसमखीणसंजोगअजोगिगुणा ॥११३२॥ चौदह गुण स्थानों के नाम कहते हैं १- मिथ्यात्व, २- सास्वादन, ३- मिश्र, ४- अविरति, ५- देशविरति, ६- प्रमत्त,७- अप्रमत्त,८-निवृत्त,६- अनिवृत्त, १०सूक्ष्म संपराय, ११- उपशांत मोह, १२- क्षीण मोह, १३- संयोगी और १४- अयोगी। (११३२)
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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