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________________ (२७५) है। इस तरह होने से एक वक्र गति में भी एक समय निराहार होता है। (१११५१११६) अन्यस्यां द्वावनाहारौ तृतीयस्यां त्रयस्तथा ! चतुर्थ्यामपि चत्वारः साहारोऽन्त्योऽखिलासु यत् ॥ १११७॥ द्विवक्र गति में दो समय आहार रहित होते हैं त्रिवक्रा गति में तीन समय और चतुर्वक्र गति में चार समय आहार रहित होते हैं। क्योंकि सर्व गतियों में अन्तिम समय ही आहार सहित होता है । (१११७) ततश्च व्यवहारेणोत्कर्षतः समयास्त्रयः 1 निश्चयेन तु चत्वारो निराहाराः प्रकीर्तिताः ॥ १११८॥ इस तरह होने से व्यवहार नय से उत्कृष्ट तीन समय आहार रहित कहे हैं और निश्चय से चार समय आहार रहित कहे हैं । (१११८) सामान्यात् सर्वतः स्तोका निराहाराः शरीरिणः । आहारका असंख्येय गुणास्तेभ्यः प्रकीर्तिताः ॥ १११६॥ सामान्यत: निराहारी प्राणी सब से अल्प हैं और आहार सहित उनसे असंख्य गुणा कहे हैं। (१११६) त्रिविधश्च स आहार ओज आहार आदिमः । लोमाहारो द्वितीयश्च प्रक्षेपाख्यस्तृतीयकः ॥११२०॥ यह जो आहार की बात कही है वह आहार तीन प्रकार का है १- ओज आहार, २- लोम आहार और ३- प्रक्षेप आहार । ( ११२०) तत्राद्यं देहमुत्सृज्य ऋज्व्या कुटिलयाथवा । गत्वोत्पत्ति स्थानमाप्य प्रथमे समयेऽसुमान् ॥११२१॥ तैजस कार्मण योगेनाहारयति पुद्गलान् । औदारिकाद्यंगयोग्यान् द्वितीयादिक्षणेष्वथ ॥ ११२१॥ औदारिकादिभिश्रेणारब्धत्वाद्वपुषस्ततः 1 यावच्छरीर निष्पत्तिरन्तर्मुहूर्त कालिकी ॥११२३॥ त्रिभिः विश । आद्य शरीर का त्याग कर ऋजु (सरल-सीधी) अथवा कुटिल (वक्र) गति से गमन करके उत्पत्ति स्थान को प्राप्त कर प्रथम समय में प्राणी तैजस और
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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