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________________ (२३७) तथा जो व्यक्ति क्षेत्र से अंगुल का संख्यातवां भाग देखता है, वह काल से आवली का भी संख्यातवां भाग देख सकता है । (६०६) सम्पूर्णमंगुलयस्तु क्षेत्रतो वीक्षते जनः । . पश्यदावलिकान्तः स कालतोऽवधि चक्षुषा ॥६१०॥ जो मनुष्य क्षेत्र से एक सम्पूर्ण अंगुल प्रमाण देखता है वह अवधि ज्ञान रूपी चक्षु से काल से आवली के अन्तर्भाग भी देख सकता है । (६१०) पश्यन्नावलिकां पश्येदंगुलानां पृथक्त्वकम् । क्षेत्रतो हस्तदर्शी च मुहूर्तान्तः प्रपश्यति ॥६११॥ काल से आवली पर्यन्त देखने वाला व्यक्ति क्षेत्र से अंगुल के पृथकत्व को भी देख सकता है और क्षेत्र से एक हाथ प्रमाण देखने वाला काल से एक मुहूर्त पर्यन्त देखता है । (६११) कालतो भिन्नदिन दृक् गव्यूतं क्षेत्रमीक्षते । योजन क्षेत्रंदी च भवेद्दिन पृथक्त्व दृक् ॥६१२॥ एक दिन के अलग-अलग अन्तर्भाग को देखने वाला एक गव्यूत के विस्तार तक देख सकता है और जो एक योजन प्रमाण क्षेत्र-विस्तार देखता है वह काल से दों से नौ दिन तक के समय को देख सकता है । (६१२) - कालतो भिन्नपक्षेक्षी पंच विंशति योजनीम् । . क्षेत्रतों चेत्ति भरतदर्शी पक्षमनूनकम् ॥६१३॥ ... . जो पक्ष दिन तक में होने वाली घटना दृष्टि से देखता है वह व्यक्ति पच्चीस योजन तक के विस्तार में देख सकता है और सम्पूर्ण भरत क्षेत्र देखने वाला स्वामी सम्पूर्ण पक्ष जितने काल को नजर से देख सकता है । (६१३) ...जानाति जम्बूद्वीपं च कालतोऽधिक मासवित् । कालतो वर्ष वेदी स्यात् क्षेत्रतो नर लोकवित् ॥६१४॥ '.एक मास से अधिक काल तक को जानने वाला मनुष्य जम्बूद्वीप तक के विस्तार पर्यन्त देख सकता है और अखिल मनुष्य लोक को दृष्टि के आगे देखने वाला सम्पूर्ण वर्ष में होने वाली सर्व बात जान सकता है । (६१४) - रूचक द्वीपदर्शी च पश्येत् वर्ष पृथक्त्वकम् । संख्येय कालदर्शी च संख्येयान् द्वीप वारिधीन् ॥६१५॥
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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