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________________ (२३२) परिपाटीमन्तरेण स्वभ्यस्त विधः द्रव्याणि ध्यायति तदा मति ज्ञान विषयः सर्व द्रव्याणि न तु सर्वे पर्यायाः। अल्पकाल विषयत्वान्मनसश्चासक्तेः॥ इति॥" इति मति ज्ञान विषयः॥ तत्त्वार्थ वृत्ति में भी कहा है कि- अच्छी तरह विधाम्यास किया हो ऐसा मति ज्ञानी जब श्रुत ज्ञान से उपलब्ध पदार्थों में अक्षरों की परिपाटी बिना भी द्रव्यों का मनन करता है तब सर्व द्रव्यों-पदार्थों का मनन मति ज्ञान का विषय होता है अर्थात् सर्व द्रव्यों को वह जानता है, परन्तु सर्व पर्यायों को नहीं जानता क्योंकि मन बहुत अल्प काल ही आसक्त रहता है।' इस तरह मति ज्ञान का विषय का स्वरूप पूर्ण हुआ। भाव श्रुतोपयुक्तः सन् जानाति श्रुत केवली । दश पूर्वादिभृद् द्रव्याण्यभिलाप्यानि केवलम् ॥८८२॥ यद्यप्यभिलाप्यार्थानन्तांशोऽस्ति श्रुते तथाप्येते ।। सर्वेस्युः श्रुत विषयः प्रसंगतोऽनुप्रसंगाच्च ॥८८३॥ जो श्रुत केवली हों वे भावश्रुत से उपयुक्त होते हैं, तब दस पूर्व आदिक में रहे केवल अभिलाप्य द्रव्यों को ही जान सकते हैं। यद्यपि श्रुत में अभिलाप्य (कथित) अर्थों के अनन्त अंश हैं फिर भी यह सब इन प्रसंग से और अनुप्रसंग से श्रुत का विषय रूप हैं । (८८२-८८३) . यथा ..... पन्न वणिज्जा भावा अणंत भागों उ अणभिलप्पाणं।. पनवणिजाणं पुण अणंत भागो सुअनिबद्धो ॥१॥ कहा है कि- कथन करने योग्य पदार्थों का अनन्तवां भागे अनभिलाप्य है और अनन्तवां भाग श्रुतनिबद्ध अर्थात् श्रुत के विषय में गूंथा हैं । (१) तथा...... श्रुतानुवर्ति मनसा ह्यचक्षदर्शनात्मना । दशपूर्वादिभृद्रव्याण्यभिलाप्यानि पश्यति॥४॥ तदारतस्तु भजना विज्ञेया धी विशेषणः । वृद्धैस्तुं पश्यतीत्यत्र तत्वमेतन्निरूपितम् ॥८८५॥ तथा अचक्षु दर्शनात्मक - श्रुतानुवर्ति - मन द्वारा दश पूर्षों में रहा अभिलाप्य द्रव्यों को देखता है । उसके अतिरिक्त सम्बन्ध में बुद्धि विशेष को लेकर भजना जानना। यहां 'मन से देखता है' इस तरह कहा है, उस सम्बन्ध में वृद्ध-अनुभवी ने कहा है कि । (८८४-८८५)
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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