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________________ (२२१) सर्व से जघन्य उपयोग वाले देखा है और वह सूक्ष्म निगोद अपर्याप्त जीवों को होता है तथा इनको लब्धि के निमित्त रूप, काया, इन्द्रिय, वाचा, मन और दृष्टि रूपी करणों द्वारा इस तरह भी देखा है कि जीवों का ज्ञान वहीं से ही प्रारम्भ होकर वृद्धि होती है । (८२५-८२६) मध्ये लब्ध्यक्षराणां स्याद्यदन्तरदक्षरम् । तदक्षरं तत्संदोहोऽक्षर समास इष्यते ॥२७॥ प्रत्येक लब्ध्यक्षर के मध्य का प्रत्येक अक्षर, अक्षर कहलाता है और इन अक्षरों के समूह को अक्षर समास कहते हैं। (८२७) पदानां यादृशानां स्यादाचारांगादिषु ध्रुवम् । अष्टादश सहस्त्रादि प्रमाणं तत्पदं भवेत् ॥२८॥ द्वयादीनि तत्समासः स्यादेवं सर्वत्र भाव्यताम् ।। संघात प्रतिपत्त्यादौ समासो ह्यनया दिशा ॥२६॥ आचारांग आदि सूत्रों में पदों का जैसे अठारह हजार आदि का प्रमाण दिया है उनमें से प्रत्येक पद कहलाता है और दो अथवा विशेष पदों का समाहार होता हो वह पद समास कहलाता है। संघात, प्रतिपत्ति आदि भेदों में समास का स्वरूप इसी तरह समझ लेना चाहिए । (८२८-८२६) . गतीन्द्रियादि द्वाराणां द्वाषष्टे क देशकः ।। • गत्यादिरेक देशोऽस्याः स्वर्गतिस्तत्र मार्गणा ॥८३०॥ . . ' जीवादेः क्रियते सोऽयं संघात इति कीर्त्यते । गत्यादि द्वयाद्यवयव मार्गणा तत्समासकः ॥३१॥ • गति, इन्द्रिय आदि बासठ द्वारों के एक देश, रूप, गति आदि और इसकी एक प्रकार रूप देवगति है, उस देवगति में जीव आदि की मार्गणा करने में आता है उसका नाम संघात ज्ञान है और ऐसी ही गति आदि दो या विशेष द्वारादि अवयवों की मार्गणा यह संघात समास ज्ञान कहलाता है। (८३०-८३१) सम्पूर्ण गत्यादि द्वारे जीवदे मार्गणा तु या । प्रतिपत्तिरियं जीवाभिगमे दृश्यतेऽधुना ॥८३२॥ तथा सम्पूर्ण गति आदि द्वारों के विषय में जीव आदि की जो मार्गणा है उसका नाम प्रतिपत्ति है। इस तरह जीवाभिगम सूत्र में कहा है। (८३२)
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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