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________________ (२१६) __तथा काल से अवसर्पिणी काल और उत्सर्पिणी काल की अपेक्षा से श्रुत सादि सान्त है और महाविदेह के काल की अपेक्षा से अनादि अनन्त है । (८१३) भवसिद्धिकमाश्रित्य साद्यन्तं भावतो भवेत् । छाद्मस्थिक ज्ञान नाशो यदस्य केवल क्षणे ॥८१४॥ भाव से (श्रुत) भवसिद्धिक जीव के आश्रित को सादि सान्त है क्योंकि जब केवल ज्ञान उत्पन्न होता है तब छद्मस्थ ज्ञान नष्ट होता है। क्योंकि शास्त्र में कहा है कि- छद्मस्थ ज्ञान नष्ट होते ही केवल ज्ञान होता है। (८१४) ___कहा है- "नटुंमिए छाउमथिए नाणे इति वचनात्॥" यह शास्त्र वचन 'अनाद्यनन्तं चाभव्यमाश्रित्य श्रुतमुच्यते। श्रुत ज्ञान श्रुताज्ञान भेदस्यात्रा विवक्षणात् ॥१५॥ क्षायोपशमिक भावे यद्वानाद्यन्तमीहितम्। एवं साद्यनादि सान्तमनन्तं श्रुतमूह्य ताम् ॥१६॥ और अभवी जीव की अपेक्षा से श्रुत अनादि अनन्त है क्योंकि वहां श्रुत ज्ञान और श्रुत अज्ञान ऐसे भेद गिने नहीं हैं दुविधा में क्षायोपशमिक भाव की अपेक्षा से यह अनादि अनन्त है। इस तरह देखते श्रुत सादि है और अनादि भी है, सान्त है तथा अनन्त भी है । (८१५-८१६) - गमाः सदृश पाठाः स्युर्यत तद् गमिकं श्रुतम् । . तत्प्रायो दृष्टि वादे स्यादन्यच्चा गमिकं भवेत् ॥८१७॥ अंगाविष्टं द्वादशांगान्यन्यदावश्यकादिकम् । इत्थं प्ररूपिताः प्राज्ञैः श्रुतभेदाश्चतुर्दश ॥१८॥ जहां गम अर्थात् सदृश पाठ हो वह गमिक श्रुत कहलाता है । यह प्रायः ' . दृष्टिवाद के विषय में होता है। गमिक सिवाय का सर्व अगमिक है । वह 'अंग प्रविष्ट' द्वादशांगी तथा अंग बाह्य' आवश्यकादि है । इस तरह प्राज्ञ पुरुषों ने श्रुत के - चौदह भेद समझाये हैं। (८१७-८१८) ये भेदा विंशतिस्तेऽपि कथ्यन्ते लेशमात्रतः। न ग्रन्थ विस्तर भयादिह सम्यक् प्रपंचिता ॥१६॥ श्रुत के बीस भेद भी कहे जाते हैं और इस विषय में भी हम यहां कुछ कहेंगे । ग्रन्थ विस्तार का भय हो जाने के कारण विस्तार पूर्वक विवेचन नहीं किया है । (८१६)
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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