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(२०५) इस प्रश्न का उत्तर देते हैं कि-तुम्हारा प्रश्न योग्य है, परन्तु यह अवग्रह निश्चय नय से एक समय स्थायी है और व्यवहार की अपेक्षा से अनेक समय स्थायी कहा है। इस तरह इसके दो भेद हैं । अर्थात् दूसरे भेद के अनुसार अनेक समय स्थायी लेने से अर्थात् इसके बहुता आदि भेद संभव हैं। पहले निश्चय नय के भेद अनुसार तो नहीं होता। (७४८-७४६)
तथोक्तं तत्त्वार्थ वृत्तौ- “ननु च अवग्रह एक सामायिकः शास्त्रे निरूपितः । न च एकस्मिन् समये चैव एकोऽवग्रह एवं विधः युक्तः अल्प कालत्वात् इति ॥ उच्यते । सत्यमेव एतत । किन्तु अवग्रहः द्विधा नैश्चयिकः व्यावहारिकश्च । तत्र नैश्चयिको नाम सामान्य परिच्छेदः स च एक सामायिकः शास्त्रेऽभिहितः । ततः नैश्चयिकादनन्तरं ईहा एवमात्मिका प्रवर्तते किमेषः स्पर्शः उत अस्पर्शः इति । ततश्च अनन्तरः अवायः स्पर्शोऽयमिति । अयं च अवायः अवग्रहः इति उपचयते ॥ यस्मात् एतेन आगामिनः भेदान् अंगीकृत्य सामान्यं अवच्छिद्यते। यतः पुनः एतस्मात् ईहा प्रवर्तिष्यते कस्यायं स्पर्शः ततश्च अवायो भविष्यति अस्यायमिति । अयमपि चावायः पुनः अक्ग्रह इति उपचर्यते॥ अत: अन्तर वर्तिनीम् ईहाम् अवायं च आश्रित्य एवं यावत् अस्यान्ते निश्चयः उपजातः भवति ( यत्र अपरं विशेषं न आकांक्षति इत्यर्थः) अवाय एव भवति न तत्र उपचारः इति । अतः एष औपचारिकः अवग्रहः तम अंगीकृत्य बहु अवग्रहाति इत्येत- दुच्यते । न तु एक समय वर्तिनं नैश्चयिकं (अंगीकृत्य) इति । एवं सर्वत्र औपचारिका- श्रयणात् व्याख्येयमिति ॥"
इस सम्बन्ध में तत्त्वार्थ वृत्ति में इस तरह कहा है कि- "शास्त्र में अवग्रह को एक समय स्थायी कहा है तो इतने अल्पकाल में बहुता आदि गुण इसमें संभव होना अशक्य है। ऐसा प्रश्न कोई व्यक्ति करता है तो इसका उत्तर इस तरह देते हैं- तुम्हारा प्रश्न योग्य है । परन्तु अवग्रह के दो भेद हैं १- नैश्चयिक और २- व्यावहारिक- उसमें नैश्चयिक अर्थात् सामान्य परिच्छेद रूप है और वह एक समय स्थायी है। इस नैश्चयिक के बाद यह स्पर्श है या अस्पर्श है ऐसी ईहा होती है, फिर संदेह खत्म होता है 'यह तो स्पर्श ही है' इस तरह ज्ञान होता है । इसका नाम अवाय है, इस अवाय का उपचारिक नाम ही अवग्रह है क्योंकि इससे सामान्य का परिच्छेद आगामी भेद को स्वीकार करते हैं । क्योंकि स्पर्श का निश्चय होता है, फिर यह किसका स्पर्श है ऐसा जानना वह ईहा होगा। और उसके बाद ही यह अमुक प्रकार का स्पर्श है, ऐसा निश्चय अवाय होता है। यह अवाय भी उपचार से अवग्रह कहलाता है। इसलिए ही बीच में रहा ईहा