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________________ (२०१) होता है क्योंकि उनको इन्द्रियां ही निमित्त रूप हैं । उनको मन का अभाव होता है इसलिए उनको मन का अल्प भी व्यापार नहीं होता । (७२६) अनिन्द्रिय निमित्तं च स्मृति ज्ञानं निरूपितम् । व्यापाराभावतोऽक्षाणां तदक्ष निरपेक्षकम् ॥७२७॥ दूसरा इन्द्रिय जिसमें निमित्त रूप नहीं हैं ऐसा स्मृति ज्ञान हैं, उसमें इन्द्रियों के व्यापार का अभाव होता है । इससे उसे उसकी अपेक्षा नहीं है। (७२७) ओघ ज्ञानमविभक्त रूपं मदपि लक्ष्यते । बल्ल्यादीनां वृत्ति नीत्वाद्यभिसर्पण लक्षणम् ॥७२८॥ तदप्यनिन्द्रिय निमित्तकमेव प्रकीर्त्यते । हेतुभावं भजन्तीह नाक्षाणि न मनोऽपि यत् ॥७२६॥ युग्मं। ... लता आदि के विषय में यद्यपि लिपट जाना आदि अभिसर्पण लक्षण वाला और अविभक्त रूप वाला ओघज्ञान दिखता है, फिर भी इसमें कुछ भी इन्द्रिय रूप नहीं है। इसमें तो इन्द्रिय या मन का भी कोई हेतु रूप नहीं है। (७२८-७२६) मत्यज्ञानावरणीयक्षयोपशम एव हि । - केवलं हेतुतामोघ ज्ञानेऽस्मिन्नश्नुते च यत् ॥७३०॥ . : इस ओघ ज्ञान के अन्दर तो केवलं मति ज्ञानावरणीय का क्षयोपशम ही हेतु- भूत है। और कुछ नहीं है । (७३०) यत्तु जाग्दवस्थायामुपयुक्तस्य चेतसा । . स्पर्शादि ज्ञानमेतच्चेन्द्रियानिन्द्रिय हेतुकम् ॥७३१॥ ... .. इदमर्थ तत्वार्थ वृत्तौ ॥ तीसरा मिश्र, जाग्रत अवस्था में, उपयुक्त चित्त वाले को जो स्पर्श आदि का ज्ञान होता है उसमें इन्द्रिय और अनिन्द्रिय दोनों निमित्त रूप हैं इसलिए वह मिश्र कहलाता है। (७३१) ये सब बात तत्त्वार्थ सूत्र की वृत्ति में कही हैं। अथ प्रकृतम्। एवमर्थावग्रहे हे अवाय धारणे इह । .. स्युश्चतुर्विंशतिः षड्भिर्ह ता इन्द्रिय मानसैः ॥७३२॥
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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