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________________ (२००) इसका दृष्टान्त इस तरह-कभी कोई वृक्ष नजर आ जाये तब प्रथम यह कुंछ है ऐसा ज्ञान होता है, इसका नाम अर्थावग्रह है । (७१६) ततस्तद्गत धर्माणां समीक्षेहा प्रजायते। निश्चयस्तरू रे वायमित्यवायस्ततो भवेत् ॥२०॥ उसके बाद उस वृक्ष के धर्मों का चिन्तन होता है- इसका नाम इहा और फिर यह वृक्ष ही है- इस तरह निश्चय होता है । वह अवाय है । (७२०) ततस्तया निश्चितस्य धारणं धारणा भवेत् । ... भाव्यते मनसोऽप्येवमथार्थावग्रहादयः ॥७२१॥ उसके बाद इसी तरह निश्चित हुए को धारण कर रखना, उसका नाम धारणा है तथा मन के अर्थावग्रह आदि का भी इसी ही तरह चिन्तन करना । (७२१) यथाहि विस्मृतं वस्तु पूर्व किंचिदिति स्मरेत् । .. ततश्च तद्गता धर्माः स्मर्यन्ते लीन चेतसा ॥७२२॥ ततश्च तत्तद्धर्माणां स्मरणातहि निश्चयः । ततः स्मृत्यानिश्चितस्य पुनस्तस्यैव धारणम् ॥७२३॥ जैसे कि कोई विस्मृत हुई वस्तु के विषय में 'कुछ था तो सही' इस तरह स्मरण होता है और उसके बाद चित्त की एकाग्रता से तद्गति धर्मों का स्मरण होता है। धर्मों के स्मरण से इसका निश्चय होता है और निश्चय होने के बाद वह निश्चय कायम होता है । (७२२-७२३). अनिन्द्रियमि नित्तं च मति ज्ञानमिदं भवेत् । अतएव त्रिधैतत्स्यादाधमिन्द्रिय हे तुकम् ॥७२४॥ अनिन्द्रिय समुत्थं चेन्द्रियानिन्द्रिय हेतुकम् । तत्राद्यमेकाक्षादीनां मनोविरहिणां हि यत् ॥७२५॥ इस प्रकार का जो मति ज्ञान है वह इन्द्रिय निमित्त रूप है ही, ऐसा नहीं है इसीलिए उसके तीन भेद हैं । उसमें प्रथम भेद इन्द्रियों हेतु वाला है, दूसरे भेद इन्द्रियों हेतु बिना का है और तीसरा भेद मिश्र वाला है । (७२४-७२५) केवलं हीन्द्रियनिमित्तकमेव भवेदिदम् । अभावान्मनसो नास्ति व्यापारोऽत्र मनागपि ॥७२६॥ इन तीन भेद में से प्रथम प्रकार का मन रहित एकेन्द्रिय आदि जीवों को
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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