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________________ (१६१) इस प्रकार देव और मनुष्य के जन्मों में सम्यकत्व से जीव भ्रष्ट न हुआ हो तो दोनों में से एक श्रेणि के अलावा एक जन्म में सर्व प्राप्त करता है । (६८७) इस तरह महाभाष्य सूत्र की वृत्ति आदि में उल्लेख है। सम्यकत्वं च श्रुतं चेति देशतः सर्वतोऽपि च । विरतीति निर्दिष्टं सामायिक चतुष्ट यम् ॥१॥ अब सम्यकत्व सामायिक आदि के विषय में कुछ कहते हैं- सम्यकत्व सामायिक, श्रुत सामायिक, देश विरति सामायिक और सर्व विरति सामायिक इस तरह चार प्रकार का सामायिक कहा है । (१). चारित्रस्याष्ट समयान् प्रतिपतिर्निरन्तरम् । शेषत्रयस्य चावल्य संख्येयांशमितान् क्षणान् ॥२॥ . उत्कर्षेण प्रतिपत्ति काल एष निरन्तरः। जघन्यतो द्वौ समयौ चतुर्णामपि कीर्तितः ॥३॥ चारित्र अर्थात् सर्व विरति सामायिक का निरन्तर प्रतिपत्ति काल आठ समय का है। शेष तीन सामायिक का एक आवली के असंख्यातवें भाग का है। वह काल उत्कृष्ट रूप में जानना। जघन्य रूप में तो चारों सामायिक का प्रतिपत्ति कालदो समय का कहा है । (२-३) द्वादेश पंचदशाहोरात्रास्तृतीय तुर्ययोः । आद्ययोः सप्त विरहो ज्येष्ठोऽन्यश्च क्षणत्रयम् ॥४॥ .. तीसरी और चौथी सामायिक का विरह काल उत्कृष्ट रूप में बारह और पंद्रह अहोरात्रि का है, और पहले दो सामायिक का सात अहोरात्रि है। जघन्य तीन समय का. हैं । (४) .. . सम्यकत्वं देशविरतिं चाप्नोत्युत्कर्षतोऽसुमान् । क्षेत्र पल्योपमासंख्य भाग क्षणमितान् भवान् ॥५॥ चारित्रं च भवानष्टौ श्रत सामायिकं पुनः । भवाननन्तान् सर्वाणि भवमेकं जघन्यतः ॥६॥ प्राणी उत्कृष्ट रूप में सम्यकत्व सामायिक और देश विरति सामायिक. क्षेत्र पल्योपम के असंख्यातवें भाग के समय जितने जन्म तक प्राप्त करता है । सर्व विरति सामायिक अर्थात् चारित्र आठ भव तक प्राप्त करता है और श्रुत
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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