SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 174
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१३७) का लक्षण है। अन्य जन को ठगना, उसका नाम माया है और तृष्णा का अतिशय होना लोभ कहलाता है । (४१०) चत्वारोऽन्तभर्वन्त्येते उभयोढे परागयोः । आदिमौ द्वौ भवेद् द्वेषो रागः स्यादन्तिमौ च तौ ॥४११॥ . इन चार कषायों का द्वेष और राग दो कषायों में समावेश होता है। प्रथम दोक्रोध और मान का द्वेष के अन्दर और अन्तिम दो- माया और लोभ का राग के अन्दर समावेश होता है । (४११) केचिच्च- स्वपक्षपातरूपत्वान्मानोऽपि राग एव यत् । ततस्त्रयात्मको रागो द्वेषः क्रोधस्तु केवलम् ॥४१२॥ और कितने ही आचार्य अपने विषय में पक्षपात करना ही मान कहा है और मान को भी राग के अन्तर्गत करते है। इस कारण से मान, माया और लोभ की त्रिपुटी को राग कहते हैं तथा केवल एक क्रोध को ही द्वेष रूप में गिना है । (४१२) चत्वारोऽपि चतुर्भेदाः स्युस्तेऽनन्तानुबन्धिनः । अप्रत्याख्यानकाः प्रत्याख्यानाः संज्वलना इति ॥४१३॥ इन चार कषायों के भी चार-चार भेद होते हैं - १- अनन्तानुबन्धी, २अप्रत्याख्यानी, ३- प्रत्याख्यानी, ४- संज्वलन.। (४१३) एतल्लक्षणानि च श्री हेमचन्द्र सूरिभिरित्थमूचिरे : पक्षं संचलनः प्रत्याख्यानो मास चतुष्टयम् । अप्रत्याख्यानको वर्ष जन्मानन्तानुबन्धिकः ॥४१४॥ वीतरागयति श्राद्ध सम्यग्दृष्टि त्व घातकाः । ते देवत्व मनुष्यत्व तिर्यकत्व नरक प्रदाः ॥४१५॥ इसके लक्षण आचार्य श्री हेमचन्द्र सूरीश्वर जी ने योगशास्त्र के चौथे प्रकाश, ७ - ८ वीं गाथा में कहे हैं कि- संज्वलन क्रोध, मान, माया और लोभ की काल मर्यादा पंद्रह दिन तक की रहती है । कषाय का प्रत्याख्यान चार मास तक है। कपाय का अप्रत्याख्यान एक वर्ष तक रहता है और अनन्तानुबन्धी कषाय जन्मपर्यन्त तक रहता है । ये संज्वलनादि चार कषाय क्रमशः प्रथम वीतरागत्व, दूसरे में साधुत्व, तीसरे में श्रावकत्व और चौथे में सम्यकत्व का घात करते है तथा ये चारों अनुक्रम से देवत्व, मनुष्यत्व, तिर्यंचत्व और नरकत्व प्राप्त कराते हैं । (४१४-४१५)
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy