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________________ (१२६) १- जम्बू वृक्ष का दृष्टान्त कोई छः मनुष्य रास्ता भूल गये अतः जंगल में पहुँच गये। वहां भूख से व्याकुल होकर चारों दिशाओं में खाने की खोज करते हुए एक स्थान पर पक्के और रस वाले जामुन का एक पेड़ देखा । उसे देखकर सब हर्षित होकर कहने लगे - हमारे भाग्य से हमें यह पेड़ दिखाई दिया है इसलिए अब इसके फल खाकर अपनी भूख मिटानी चाहिए। उसमें से एक क्लिष्ट परिणाम मनुष्य ने कहा कि- इस पेड़ पर चढ़ना तो मुश्किल है, जान का खतरा है । अतः तीखे कुल्हाड़े से इसे जड़ से काट कर नीचे गिरा देना चाहिए और फिर निश्चिन्त होकर सुखपूर्वक इसके सारे फल खाने चाहिएं। दूसरा उससे कुछ कोमल हृदय वाला था । वह कहने लगा- इस तरह पेड़ को काटने से हमें क्या लाभ है? हमें फल खाने हैं तो सिर्फ इसकी एक बड़ी शाखा (डाली) काटकर नीचे गिरा देनी चाहिए और उसमें लगे फलों को खाकर संतोष मानना चाहिए। तभी तीसरे ने कहा- इतनी बड़ी शाखा के तोड़ने से क्या लाभ ? सिर्फ उसकी एक प्रशाखा (टहनी) को ही काट डालना चाहिए। यह सुनकर चौथा बोला- छोटी प्रशाखा को भी काटने से क्या लाभ? सिर्फ उसके गुच्छे तोड़ लेने से अपना काम हो सकता है। उसी समय पांचवें ने कहा- अजी गुच्छे तोड़ने से क्या फायदा? सिर्फ पके हुए और खाने योग्य फलों को ही हमें अपनी जरूरत के अनुसार तोड़ लेना चाहिए । अब छठे से न रहा गया। उसने कहा- फल तोड़ने की भी क्या आवश्यकता है? जितने फलों की हमें आवश्यकता है उतने पके फल तो इस वृक्ष के नीचे गिरे हुए मिल जायेंगे तो फिर उन्हीं से भूख मिटाकर प्राणों का निर्वाह करना अच्छा है । पाप का सेवन क्यों करना चाहिए ? (३६४ से ३७१) ... भाव्याः पणामप्यमीषां लेश्याः कृष्णादिकाः क्रमात् । दर्श्यतेऽन्तोऽपि दृष्टान्तो दृष्टः श्री श्रुतसागरे ॥३७२॥ इस दृष्टान्त में छ: मनुष्यों की बात कही है। उसमें छहों की अलग-अलग लेश्या होती है, प्रथम के दुष्परिणाम होने से कृष्ण लेश्या वाला था । दूसरा हल्के भाव होने से दूसरी नील लेश्या वाला है । तीसरे पुरुष के भाव कापोत लेश्या हैं। चौथे के परिणाम तेजो लेश्या हैं, पांचवें पुरुष के भाव पद्म लेश्या वाले हैं और छठे पुरुष के परिणाम शुक्ल लेश्या के भाव जानना । (३७२)
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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