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________________ (१२७) "तथैव संग्रहण्यामपि उक्तम्-चरमा नराण पुण नव वासूणा पुव्व कोडीवि इति।। संग्रहणी वृत्तौ प्रवचन सारो द्धार वृत्तौ च नाराणां पुनश्च रमा शुक्ल लेश्या उत्कर्षत: किंचिन्यूननववर्षोन पूर्व कोटी प्रमाणापि॥इयं च पूर्व कोटे रुवं संयमावाप्तेर भावात्पूर्व कोटयायुषः किंचित् समधिक वर्षाष्टकादूर्ध्वमुत्पादित केवल ज्ञानस्यकेवलिनोऽवसेया इत्युक्तम्॥अत्रच पूर्व कोटया नववर्षानत्वं किंचिन्यून नववर्षोनत्व किंचित्समाधिकाष्टवर्षोनत्यं इति जय मिथोयथा न विरुध्यते तथा बहुश्रुतोभ्यो भावनीयम् ॥" इस प्रकार संग्रहणी में भी चरम शरीर मनुष्यों की शुक्ल लेश्या की स्थिति करोड़ पूर्व वर्ष में से नौ वर्ष कम मानी है । संग्रहणी की वृत्ति में और प्रवचन सारोद्धार की वृत्ति में कहा है कि- मनुष्य की अन्तिम शुक्ल लेश्या उत्कर्षतः पूर्व कोटि वर्ष से लगभग नौ वर्ष कम की होती है । इस तरह पूर्व करोड़ के बाद संयम प्राप्ति न होने से पूर्व कोटि के आयुष्य वाला और आठ वर्ष से कुछ अधिक काल व्यतीत होने के बाद केवल ज्ञान उपार्जन किया, इस प्रकार केवली ज्ञान सम्बन्धी है तथा यहां पूर्व करोड़ में १- नौ वर्ष-कम, २- लगभग नौ वर्ष कम तथा ३- आठ उपरांत वर्ष इस तरह तीन बात कही है। परस्पर विरोध न आए, इस प्रकार बहुश्रुत शास्त्रज्ञ के पास समझ लेना। प्रत्येकं सर्वलेश्यानामनन्ता वर्गणाः स्मृताः । प्रत्येकं निखिला लेश्यास्तथानन्त प्रदेशिकाः ॥३६०॥ सर्व लेश्याओं में प्रत्येक की अनन्त वर्गना कही हैं तथा प्रत्येक लेश्या के अनन्त प्रदेश कहे हैं । (३६०) असंख्यात प्रदेशावगाढाः सर्वा उदाहताः । स्थानान्यध्यवसायस्य तासां संख्याति गानि च ॥३६१॥ तथा सर्व लेश्याओं के अवगाह के प्रदेश अनंत कहे हैं और इसके अध्यवसाय के असंख्य स्थान असंख्य प्रदेशावगाह कहे हैं । (३६१) क्षेत्रतस्तान्यसंख्येय लोकाभ्रांश समानि वै । कालतोऽसंख्येय काल चक्र क्षणमितानि च ॥३६२॥ यह स्थान क्षेत्र की अपेक्षा से असंख्यात लोकाकाश के प्रदेश कहे हैं और . काल की अपेक्षा से असंख्य काल चक्र जितना समय होता है । (३६२)
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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