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________________ (१२२) आद्यात्र सप्तम महीगरिष्ठ स्थित्यपेक्षया । धूमप्रभाद्य प्रतरोत्कृष्टायुश्चिन्तया परा ॥३३२॥ प्रथम लेश्या की स्थिति सातवीं नरक की उत्कृष्ट स्थिति की अपेक्षा से कही है, और दूसरी लेश्या की स्थिति धूमप्रभा नामक नारकी के प्रथम प्रस्तर की उत्कृष्ट आयुष्य की अपेक्षा से कही है । (३३२) . शैलाद्यप्रतरे ज्येष्ठ मपेक्ष्यायुस्तृतीयिका ।। तुर्या चैशान देवानामुत्कृष्ट स्थित्यपेक्षया ॥३३३॥ तीसरी लेश्या की स्थिति शैला के प्रथम प्रस्तर के उत्कृष्ट आयुष्य की अपेक्षा से कही है और चौथी लेश्या की स्थिति इशान देवलोक के देवों के उत्कृष्ट आयुष्य की अपेक्षा से कही है । (३३३) पंचमी ब्रह्मलोकस्य गरिष्ठायुरपेक्षया । षष्ठी चानुत्तर सुरंपरमायुरपेक्षया ॥३३४॥ पांचवीं लेश्या की स्थिति ब्रह्म देवलोक के उत्कृष्ट आयुष्य की अपेक्षा से तथा छठी लेश्या की स्थिति अनुत्तर विभाग के देवों के उत्कृष्ट आयुष्य की अपेक्षा से कही हैं । (३३४) "अत्र यद्यपि पकं प्रभा शैलाद्य प्रस्तरयोः पूर्वोक्ता दधिकापि स्थितिरस्ति परं प्रस्तुत लेश्यावतामियमेवोत्कृष्टा स्थितिरिति ज्ञेयम् । यत्तु प्रज्ञापनोत्तराध्ययन सूत्रादौ कृष्णादीनामन्तर्मुहूर्ताभ्याधिकत्वमुच्यते तत् प्राच्याभव सत्कान्तार्मुहूर्त्तयोरे कम्मिन्नन्तर्मुहूर्त समावेशात् । इत्थं च एतत् अन्तर्मुहूर्तस्य असंख्यातभेदत्वात् उपपद्यते इत्यादि प्रज्ञापना वृत्तौ ॥'' इति सामान्यतः लेश्या स्थितिः ॥ यहां यद्यपि पंक प्रभा और शैल के पहले प्रस्तरों की पूर्वोक्त से अधिक भी स्थिति है, फिर भी इस प्रस्तुत लेश्या वालों की तो इतनी ही उत्कृष्ट स्थिति समझना। पन्नवणा और उत्तराध्ययन सूत्रों में कृष्ण लेश्या आदि का एक अन्तर्मुहूर्त से अधिक रूप कहा है । वह पूर्व के तथा आगे के जन्म के इस तरह दोनों अन्तर्मुहूर्तों का एक ही अन्तर्मुहूर्त में समावेश करने को कहा है। तथा अन्तर्मुहूर्त के असंख्य भेद होने से यह घट सकता है। इस प्रकार पन्नवना सूत्र की वृत्ति में कहा है। इस तरह लेश्याओं की सामान्य स्थिति का वर्णन किया है। अब स्थिति काल कहते हैं
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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