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________________ (१०७) आकार द्वितीय समय में होता है । इन तीनों समय में कार्मण युक्त औदारिक शरीर का योग होता है । चौथे समय में मथानी के अन्तरालों को भरा जाता है तब वे चौदह राजलोक व्यापी बन जाते हैं । पांचवें समय में मथानी के अन्तराल का उपसंहार करते हैं और तीसरे समय में मथानी का आकार होता है। इन तीनों ही समयों में कार्मण शरीर योग होता है व उसमें जीव नियम से अनाहारक होते हैं । (२४६-२५०) ये प्रशमरति की २७५-२७६ वीं गाथाएं हैं । किं च- समुद्घातानिवृत्यासौत्रिधा योगान् भुनक्त्यपि । सत्यासत्यामषामिख्यौ योगौ मानस वाचिकौ ॥२५१।। तथा समुद्घात से निवृत्त होकर ये केवली भगवंत मन-वचन-काया इन तीन प्रकार के योग से युक्त होते हैं । उसमें सत्य और असत्य या नहीं असत्य अर्थात् व्यवहार इन नाम के दो योग, वह मनयोग और वचन योग हैं, से युक्त होते हैं । (२५१) पृष्टेषु मन सार्थेषु तत्रानुत्तर नाकिभिः । दातुं तदुत्तरं चेतोयोग युग्मं युनक्ति सः ॥२५२।। तथा मनुष्यादिना च पृष्टोऽपृष्टोऽपि स प्रभुः । प्रयोजन विशेषेण युनक्त्येतो च वाचिकौ ॥२५३॥ काययोग प्रयुंजानो गमनागमनादिषु । चेष्टे त पीठ पट्टाद्यमर्पयेत्प्रातिहारिकम् ॥२५४॥ अनुत्तर विमान के देव मन द्वारा कोई भी प्रश्न करे और उनको केवली भगवन्त मन से ही उत्तर दें, वह प्रथम मनोयोग है तथा मनुष्य आदि के प्रश्न-संशयशंका को निवारण करने के लिए केवली का विशिष्ट प्रयोजन होने से बोलना ही पड़ता है, वह दूसरा वचन योग है और गमन आगमन आदि करने में तथा पीठ पट्ट आदि वापिस सौंपना हो तब तीसरा काय योग होता है। (२५२ से २५४) एवं च-कैश्चिदित्युच्यते यत्तु शेष षण्मास जीवितः। जिनः कुर्यात्समुद्घातं तद सद्यत्तथा सति ॥२५५॥ प्रातिहारिक पीठ देरा दानमपि सम्भवेत्। श्रुते तु केवलं प्रोक्तं तत्प्रत्यर्पणमेव हि ॥२५६॥ (युग्मं।)
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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