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________________ (६४) अधो यावदधो ग्रामास्तिर्यग् नक्षेत्रमेव च । ततः परं मनुष्याणामुत्पत्ति स्थित्य सम्भवात् ॥१७८॥ इस तरह इनकी-आनतादि देवों की नीचे अवगाहना अधोग्राम तक की होती है और तिर्यग् अवगाहना मनुष्य क्षेत्र तक ही होती है क्योंकि इससे आगे मनुष्य की उत्पत्ति-स्थिति असंभव है। (१७८) . ऊर्ध्वमच्युत नाकान्तं गतानां मित्र निश्रया । ...." आनतादि क्रतु भुजामयच्यते मृत्यु सम्भवात् ॥१७६॥ उनकी ऊर्ध्व अवगाहना अच्युत देवलोक तक होती है क्योंकि मित्र की निश्रा से वहां गये हुए की मृत्यु संभव हो सकती है। (१७६) । ऊर्ध्वमच्युत जानां तु स्वविमान शिरोऽवधि । । स्वैरं तत्र गतानां यत् केषांचित् सम्भवेन्स्मृतिः ॥१०॥ अच्युत देवलोक के देवों की ऊर्ध्व अवगाहना अपने विमान के शिखर पर्यन्त होती है क्योंकि स्वच्छंद रूप से वहां जाने पर मृत्यु संभव हो सकती है। (१८०) गैवेयकानुत्तरस्थ सुराणां सावगाहना । यावद्विद्याधर श्रेणीमास्व स्थानाजघन्यतः ॥१८१॥ खेचर श्रेणि परतो मनुष्याणाम् सम्भवात् । ग्रैवेयकादि देवानामप्यत्रांगत्य सम्भवात् ॥१८२।। ग्रैवेयक और अनुत्तर विमान के देवों की तैजस अवगाहना जघन्य रूप में अपने स्थान से विधाधरों की श्रेणि तक होती है क्योंकि विधाधरों की श्रेणि से आगे मनुष्यों का जाना असंभव है और ग्रैवेयक आदि के देवों का भी यहां आना संभव नहीं है। (१८१-१८२) अधोयावद्धोग्रामानूज़ च स्वाश्रयावधि । तिर्यक् पुनर्नर क्षेत्र पर्यन्तं सा प्रकीर्तिता ॥१८३॥ उनकी नीचे अवगाहना अधोग्राम तक की है, ऊर्ध्व अपने स्थान तक की और तिर्यक् मनुष्य क्षेत्र तक की है । (१८३) यावनंदीश्वरं खेटाः सस्त्रीका यान्ति यद्यपि । संभोगमपि कुर्वन्ति तत्र कामेषुनिर्जिताः ॥१८४॥
SR No.002271
Book TitleLokprakash Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmachandrasuri
PublisherNirgranth Sahitya Prakashan Sangh
Publication Year2003
Total Pages634
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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