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जिनके करने से किसी न किसी तरह हिंसा होती है और पर्यावरण में प्रदूषण उत्पन्न होता है। ३. शिक्षाव्रत : सामाजिक सन्तुलन का अधीक्षक तत्त्व
गुणव्रतों का बाद चार शिक्षाव्रत माने गये हैं जिनका पालन करने से साधक-अवस्था की भूमिका में दृढ़ता आती हैं इनकी संख्या में मतभेद नहीं पर नामों में मतभेद अवश्य हैं। आचार्य कुन्दकुन्द ने सामायिक, प्रोषध, अतिथिपूजा और सल्लेखना को शिक्षाव्रत कहा है। भगवती आराधना में सल्लेखना के स्थान पर “भोगोभोगपरिमाणवत' रखा गया और सवार्थसिद्धि में इसकी गणना शिक्षाव्रत के रूप में न करके एक स्वतन्त्रव्रत के रूप में की गयी जिसे साधक सहसा मरण आने पर निमोंही होकर धारण करता है।२ कार्तिकेय ने “सल्लेखना" के स्थान पर 'देशावकाशिक" रखा। उमास्वामी ने सामायिक, प्रोषधोपवास, उपभोग-परिभोग-परिमाण
और अतिथिसंविभाग नाम दिये। समन्तभ्रद ने कुन्दकुन्द और कार्तिकेय का अनुःसरण करते हुये भी कुछ सुधारवादी दृष्टिकोण अपनाया और देशावकाशिक, सामायिक, वैय्यावृत्य, तथा अतिथिसंविभागवत को शिक्षाव्रत कहा। जिनसेन, अमितगति और आधाधरं ने उमास्वामी का अनुकरण किया पर सोमदेव ने उमास्वामी द्वारा बताये गये चतुर्थ व्रत “अतिथिसंविभाग" के स्थान पर “दान' रख दिया। वसुनन्दि ने कुन्दकुन्द
और उमास्वामी, दोनों का अनुकरण दिखता है। उन्होंने भोगविरति, उपभोगविरति, अतिथिसंविभाग और सल्लेखना को शिक्षाव्रत माना है। . उपर्युक्त मतभेद देखने से यह प्रतीत होता है कि संख्या तो वही रही पर आचार्य
अपने समय अपनी परिस्थिति के अनुसार उनमें परिवर्तन करते रहे। इन परिवर्तनों में प्रायः सभी आचार्यों ने आत्मचिंतन, व्रतोपवास, भोगोपभोगसामग्री को सीमित करना, दानादि देना, अतिथियों का सत्कार करना आदि जैसे सद्गुणों और व्यावहारिक दृष्टियों को नियोजित किया। इसके बाद आहारदान, ज्ञानदान, औषधिदान और अभयदान पर अधिक जोर दिया गया।
दान का अर्थ मात्र विसर्जन नहीं है, बल्कि यह है कि वह विसर्जन अपने और दूसरे के उपकार और अनुग्रह के लिए हो- अनुग्रहार्थं स्वस्यातिसगो दानम्, तत्वार्थसूत्र ६.१२। यहाँ परिभाषा में दिया हुआ “अनुग्रह" शब्द विशेष महत्त्वपूर्ण है। उसका अर्थ है अपने दया, उदारता, सहानुभूति, सेवा, विनय, सहिष्णुता, समता आदि विशिष्ट गुणों के संचय के लिए तथा दूसरों के सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र आदि के
१. चारित्रप्राभृत, ५.१ २. सवार्थसिद्धि, ७.११. २. Jainism in Buddhist Literature, p. 103-4.