SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 450
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वसुनन्दि-श्रावकाचार गाथाङ्क ६८ ० m ९६ ३३४ परिशिष्ट गाथाङ्क २९८ | ण य कत्थ वि कुणइ रइं ७३ | ण य भुंजइ आहारं ३०८ / णवमासाउगि सेसे २६४ २३८ | णासावहारदोसेण १.३० २७२ | णिच्चं पलायमाणो २१३ | णिट्टर-कक्कसवयणाइ . . २३० २१७ | णिद्दा तहा विसाओ २९५ | णिद्देसं सामित्तं २४८ णिययं पि सुयं बहिणिं . २६२ | णिव्विदिगिच्छो राओ २७५ | णिस्ससइ रुयइ गायइ १६८ | णिस्संका णिक्कंखा | णिस्सेसकम्ममोक्खो | णेऊण णिययगेहं . . .२२७ . | णेच्छंति जइ वि ताओ .. ११७ णेत्तुद्धारं अह पा १०९ ५९ । णेरइयाण सरीरं १५३ जं किं चि गिहारंभ जं किं चि तस्स दव्वं जं किं पि पडियभिक्खं जं कीरइ परिरक्खा जं कुणइ गुरुसयासम्मि जं परिमाणं कीरइ जं परिमाणं कीरइ जं वज्जिज्जइ हरियं जायइ कुपत्तदाणेण जायंति जुयल-जुयला जिणवयण-धम्म-चेइयजिब्भाछेयण-णयणाण जीवस्सुवयारकरा जीवाजीवासवबंधजीवो हु जीवदव्वं जूयं खेलंतस्स हु जूयं मज्जं मंसं जेणज्ज मज्झ दव्वं जे तसकाया जीवा जे पुण कुभोयभूमीसु जे पुण सम्माइट्ठी जे मज्ज-मंसदोसा जो अवलेहइ णिच्चं जो पस्सइ समभावं जो पुण जहण्णपत्तम्मि जो मज्झिमम्मि पत्तम्मि जोव्वणमएण मत्तो ७६ . १४८ १५१ २०२ .२५० २४७ | तत्तो णिस्सरमाणं . . तत्तो पलाइऊणं . | तत्थ वि अणंतकालं तत्थ वि दहप्पयारा | तत्थ वि दुक्खमणंतं | तत्थ वि पडीत उवरिं | तत्थ वि पविट्ठमित्तो | तत्थ वि बहुप्पयारं | तय-वितय-धणं सुसिरं तस्स फलमुदयमागय५४ | तं किं ते विस्सरियं तं तारिससीदुण्हं ६३ | तिरियगईए वि तहा १०४ | तिविहं मुणेह पत्तं १५० | तिसिओ विभुक्खिओ हं १५२ १६२ २६७ २४६ १४३ २५३ १४४ ठिदियरणगुणपउत्तो १६० १४० १७७ ण गणेइ इट्ठमित्तं ण गणेइ माय-बप्पं ण मुयंति तह वि पापा २२१ १८८
SR No.002269
Book TitleVasnunandi Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilsagar, Bhagchandra Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages466
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy