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________________ आचार्यों ने आगमों का मन्थन कर श्रावकों के गुणों को एकत्रित किया है। जिनमण्डन गणि ने ऐसे ३५ गुणों का उल्लेख किया है जिनका श्रावकों में होना आवश्यक है- (१) न्याय सम्पन्न वैभव, (२) शिष्टाचार की प्रशंसा, (३) कुल एवं शील की समानता वाले उच्च गोत्र के साथ विवाह, (४) पापभीरुता, (५) प्रचलित देशाचार का पालन, (६) राजा आदि की निन्दा से अलिप्तता, (७) योग्य निवासस्थान में द्वारवाला मकान, (८) सत्संग, (९) माता-पिता का पूजन-आदर-सत्कार, (१०) उपद्रव वाले स्थान का त्याग, (११) निन्द्य प्रवृत्तियों से अलिप्तता, (१२) अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार व्यय करने की प्रवृत्ति, (१३) सम्पत्ति के अनुसार वेशभूषां, (१४) सुश्रूषा आदि आठ गुणों से युक्तता, (१५) प्रतिदिन धर्म का श्रवण, (१६) अजीर्णता होने पर भोजन का त्याग, (१७) भूख लगने पर प्रकृति के अनुकूल भोजन, (१८) धर्म, अर्थ और काम का परस्पर बाधा रहित सेवन, (१९) अतिथि, साधु एवं दीन.जन की यथायोग्य सेवा, (२०) सर्वदा कदाग्रह से मुक्ति, (२१०) गुण में पक्षपात, (२२) प्रतिबद्ध देश एवं काल की क्रिया का त्याग, (२३) स्वावलंबन का परामर्श, (२४) व्रतधारी और ज्ञानवृद्धजनों की पूजा, (२५) पोष्यजनों का यथायोग्य पोषण, (२६) दीर्घदर्शिता, (२७) सौम्य आकार, (२८) विशेषज्ञता, (२९) कृतज्ञता, (३०) लोकप्रियता, (३१) लज्जालुता, (३२) कृपालुता, (३३) सौम्य आकार, (३४) परोपकार करने में तत्परता, (३५) अन्तरंग छ: शत्रुओं के परिहार के लिए उद्योगिता और (३६) जितेन्द्रियता। हरिभद्रसूरि ने ऐसे गुणों को गृहस्थों के सामान्य धर्म में अन्तर्भूत किया है। इन गुणों में धर्म के साथ ही अन्य क्षेत्रों से सम्बद्ध साधारण गुणों का भी समावेश कर दिया गया है। श्राद्धविधि में इन्हीं गुणों को संक्षेप में २१ बताया है (१) उदार हृदयी, (२) यशवन्त, (३) सौम्य प्रकृति वाला, (४) लोकप्रिय, (५) अक्रूर प्रकृतिवाला, (६) पाप से भय खाने वाला, (७) धर्म के प्रति श्रद्धावान, (८) चतुर, (९) लज्जावान, (१०) दयाशील, (११) मध्यस्थ वृत्तिवान्, (१२) गंभीर, (१३) गुणानुरागी, (१४) धर्मोपदेशक, (१५) न्यायी, (१६) शुद्ध विचारक, (१७) मर्यादा युक्त व्यवहारक, (१८) विनयशील, (१९) कृतज्ञ (२०) परोपकारी और (२१) सत्कार्य में दक्षा __इन गुणों से युक्त श्रावक निश्चित ही समाज और राष्ट्र का अभ्युत्थानकारी सिद्ध होगा। ये गुण सामाजिक धर्म हैं और सामाजिक प्रदूषण को दूर करने वाले हैं। जीवन १. श्राद्ध गुण विवरण-अगरचन्द नाहटा द्वारा संकलित, जिनवाणी, जनवरी-मार्च, १९७०, पृ. ४५. २. श्रावक समाचारी-रूपचन्द्र जैन, जिनवाणी, जनवरी-मार्च १९७०, पृ. ८०.
SR No.002269
Book TitleVasnunandi Shravakachar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSunilsagar, Bhagchandra Jain
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year1999
Total Pages466
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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