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________________ परम पूज्य व्याख्यान वाचस्पति आचार्य देव श्रीमद्विजय यतीन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. का चार्तुमास राणापुर नगर में था। चातुर्मास में अर्द्ध शताब्दी समारोह का हिसाब लेकर के श्री छाजेड़जी पूज्य गुरुदेव की सेवा में उपस्थित हुए। अर्द्ध शताब्दी समारोह की समिति में सदस्यों के सम्मुख अर्द्ध शताब्दी समारोह का आयव्यय-पत्रक रखा। समिति ने पत्रक का निरीक्षण करके आयव्यय-पत्रक के ऊपर समिति के सदस्यों में से सेठ सागरमलजी, चम्पालालजी राणापुर, सेठ श्री पन्नालालजी लोढ़ा, टाण्डा एवं सेठ श्री केशरीमलजी मोतीलालजी बाग ने हस्ताक्षर करके यह सूचना लिखी कि किसी भी महानुभाव को अर्द्ध शताब्दी समारोह का हिसाब देखना हो, वह एक वर्ष तक की धार में श्री मांगीलालजी छाजेड़ के पास जाकर देख सकते हैं। समारोह के सम्पूर्ण आयव्यय-पत्रक को समारोह के कार्यक्रमों की जानकारी सह प्रकाशित करके सम्पूर्ण समाज को भेजा गया। . . चार्तुमास पूर्ण कर परमपूज्य आचार्य श्री मोहनखेड़ा तीर्थ पधारे। दिनांक २५-१२-५७ को मोहनखेड़ा तीर्थ के विकास कार्यक्रमों को प्रारंभ करते हुए श्रीमद्राजेन्द्रसूरि जैनाश्रम के नाम से धर्मशाला का शिलान्यास किया। दिनांक २५-१२-५७ की 'वह शुभ घड़ी से मोहनखेड़ा तीर्थ के विकासोन्मुखी कार्य का ऐसा प्रारम्भ हुआ कि आज ४० वर्ष से तीर्थ विकास के कार्य प्रारंभ हैं। दिनांक २५-०१-५८ को राजगढ़ श्रीसंघ के प्रतिनिधि एकत्रित होकर के पूज्य आचार्य श्री कि सेवा में उपस्थित हुए। आचार्य श्री से प्रार्थना की कि गुरुदेव आप श्री के आदेश से आज
SR No.002268
Book TitleGunanurag Kulak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay
Publication Year1997
Total Pages328
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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