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________________ और समाज में अपने माता- -पिता के नाम को उज्जवल करते हुए धर्म की आराधना, उपासना, अर्चना से समाज को दिशा दिग्दर्शन करेगा और जन्म नक्षत्र उत्तराषाढा नक्षत्र होने से इसका नाम जवेरचन्द, जयन्तिलाल, जयप्रकाश आदि आता है। नाम सुनकर बालक की बड़ी माँ बोली महाराज पंचाग से इसका नाम जो भी आता हो वह ठीक है, किन्तु यह बालक हमारे तीनों घर का दीपक है, और मैंने पूज्य दादा गुरुदेव से मांग कर लिया है, इसलिए मैं तो इसका नाम मांगीलाल रखूंगी। बालक अपनी बाल क्रीड़ा से परिजनों को आनन्दित करता हुआ ५ वे वर्ष में प्रवेश करने पर श्रेष्ठ दिन देखकर बालक को शिक्षा के लिए विद्यालय में प्रवेश करवाया। बालक प्रतिदिन जिनेन्द्र दर्शन, गुरुवन्दन अपने मातापिता के प्रतिदिन चरण स्पर्श कर अपना दैनिक कार्य प्रारम्भ करता था। संवत १९८० का ग्रीष्मकाल चल रहा था। नगर में त्रिस्तुतिक समाज के प्रकाण्ड विद्वान इतिहास प्रेमी समाज संगठन के प्रणेता परम पूज्य व्याख्यान वाचस्पति महामहोपाध्याय श्रीमद् यतीन्द्रविजयजी महाराज सा. (बाद में परमपूज्य श्रीमद्विजय यतीन्द्रसूरीश्वरजी) पधारे हुए थे, उस समय राजगढ़ नगर में त्रिस्तुतिक संघ में एक विवाद चल रहा था, जिसके कारण श्री मोहनखेड़ा तीर्थ में परम पूज्य आचार्य भगवन्त श्रीमद्विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजी महाराज सा. के समाधि मंदिर की प्रतिष्ठा का कार्य रुका हुआ था। परम पूज्य उपाध्यायजी महाराज सा. के प्रभावशाली व्याख्यानों का ऐसा प्रभाव हुवा कि दोनों दल ने परम पूज्य उपाध्यायजी महाराज सा. को लिखित में दे दिया कि आप जो भी निर्णय प्रदान करेंगे वह हमें मान्य होगा।
SR No.002268
Book TitleGunanurag Kulak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay
Publication Year1997
Total Pages328
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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