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________________ । श्री गुणानुरागकुलकम् २३३ ८. संसार में जितने बड़े-बड़े साधु, महात्मा, धार्मिक, योगी और कर्मकांडी आदि हुए हैं, जो अपने अपने निर्मल चरित्र के प्रकाश से मानव समाज को उज्ज्वल कर गए हैं, वे सभी निःस्वार्थ और ऐश्वरीय प्रेम सम्पन्न थे। ९. जिन लोगों ने बचपन में सौजन्य शिक्षा का लाभ नहीं लिया,जो लोग सौजन्य प्रकाश करने का संकल्प करके भी अपने कठोर स्वभाव के दोष से अशिष्ट व्यवहार कर बैठे हैं, वे लोग साधारण कामों में शिष्टाचारी होने का अभ्यास करते-करते अन्त में शिष्ट और सुशील हो सकते हैं। १०. जो स्वभाव के चञ्चल हैं, वे गंभीर भाव का अभ्यास करते गंभीर बन सकते हैं। उसी प्रकार जो गंभीर प्रकृति के मनुष्य हैं, वे वाचाल बन्धु समाज में रहकर उन लोगों के मनःसन्तोषार्थ वाचालता का अनुकरण करते-करते स्वाभावतः वाचाल हो सकते - ११. चिरकाल तक अशिष्ट व्यवहार से हृदय की कोमलता के नष्ट हो जाने पर भी कोई इस बात को अस्वीकार नहीं कर सकता कि अशिष्ट लोगों के संसर्ग की अपेक्षा शिष्टाचारी, विनयी सज्जन की संगति में विशेष सुख नहीं है। - १२. अपने जीवन को सुखी बनाने के लिए अनेक उपाय हैं, उनमें शिष्ट व्यवहार भी यदि एक उपाय मान लिया जाय और इससे दूसरी कोई उपकारिता न समझी जाय तो भी सुजनता की शिक्षा नितान्त आवश्यक है। सामान्य सुजनता से भी कभी-कभी लोगों का विशेष उपकार हो जाता है।
SR No.002268
Book TitleGunanurag Kulak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay
Publication Year1997
Total Pages328
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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