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श्री गुणानुरागकुलकम् के दर्शन नहीं करते, वे यदि नीतिज्ञ बनना चाहें, तो कैसे बन सकते हैं ? सब लोग मौन पकड़कर चुपचाप बैठे रहे, तब राजा ने कहा - क्या मेरे शहर में कोई भी नीति से व्यापार करने वाला नहीं है ? इतने में एक प्रामाणिक मनुष्य ने कहा कि - राजन् ! 'पाप जाने आप और माँ जाने बाप' इस लोकोक्ति के अनुसार यहाँ उपस्थित सभी साहूकार अन्यायप्रिय मालूम पड़ते हैं, लेकिन इस शहर में 'लल्लणसेठ' कभी अनीति का व्यापार नहीं करता, किन्तु इस समय वह यहाँ हाजिर नहीं है। .
. .. - इस बात को सुनकर राजा ने सेठ को बुलाने के लिए सवारी सहित मंत्री को उसके घर पर भेजा। मंत्री ने सेठ के घर पर जाकर कहा - सेठजी चलिये, आपको राजा साहब बुलाते हैं, इसीलिये यह सवारी भेजी है। सेठ आनन्दित हों कपड़ा पहनकर चलने के लिए तैयार हुआ। मंत्री ने वग्घी में बैठने को कहा। तब सेठ ने जवाब दिया कि इसके घोड़े मेरा दाना-पानी नहीं खाते, अतएव इसमें मैं नहीं बैठ सकता, मैं तो पैदल ही चलूँगा, ऐसा कहकर प्रधान के साथ सेठ पैदल चलकर राजा के पास आया और राजा को नमस्कार कर उचित स्थान पर बैठ गया।
राजा ने सेठ से कहा कि - तुम्हारे पास न्याय सम्पन्न विभव है, इससे खात मूहूर्त के लिए पाँच जाति के पाँच रत्न चाहिये। सेठ ने विनयपूर्वक हाथ जोड़कर कहा कि - राजन् ! नीति का द्रव्य अनीति मार्ग में नहीं लग सकता। सेठ का वचन सुनते ही राजा सरोष हो बोला कि तुम्हें रत्न देना पड़ेंगे ? सेठ बोला ; स्वामिन् ! यह घरबार सब आपका ही है, आप चाहें जब ले सकते हैं। इतने में ज्योतिषियों ने कहा कि - 'हुजूर ! यों लेना भी तो अन्याय है,