________________
॥ प्रभु श्रीमद्विजय राजेन्द्रसूरीश्वर गुरुभ्यो नमः ।।
ॐ
श्री
गुणानुराग- कुलक
संस्कृत छाया शब्दार्थ- भावार्थ विस्तृत हिन्दी विवेचन परम पूज्य व्याख्यान वाचस्पति साहित्याचार्य भट्टारक श्रीश्रीश्री १००८
श्रीमद्विजय यतीन्द्रसूरीश्वरजी महाराज
* प्रेरक
संयमवय स्थिविर मुनिराज
श्री सौभाग्यविजयजी महाराज
सम्पादक : ज्योतिषाचार्य शासन दीपक
मुनिप्रवर जयप्रभविजय " श्रमण "
तृतीय संस्करण १०००