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________________ १०४ श्री गुणानुरागकुलकम् किसी.का मान नहीं रहा, राजा रावण ने अभिमान से 'रामचन्द्र' जैसे न्यायनिष्ट महात्मा के साथ वैर विरोध बढ़ाकर लंका का जयशाली राज्य खो दिया और आखिर मरकर नरक कुण्ड में पड़ा तथा दुःखी हुआ, महात्मा 'बाहुबली' मुनि मुद्रा धारण कर एक वर्ष पर्यन्त कार्योत्सर्ग ध्यान में खड़े रहे, परन्तु अभिमान के सबब से उन्हें केवल ज्ञान उत्पन्न नहीं हुआ, किन्तु जब भगवान श्री ऋषभदेवस्वामीजी की भेजी हुई 'ब्राह्मी' और 'सुन्दरी' ने आकर कहा कि 'हे . बंदव ! गज ऊपर से नीचे उतरो, गजारूढ़ पुरुषों को केवल ज्ञान नहीं होता' .. इस प्रकार उत्तमोत्तम प्रभावशाली सुभाषित वचनों को सुनकर शान्तिपूर्वक . विचार करने से 'बाहुबली' ने अपने गंभीर भूल को स्वीकार कर लिया और . विचार किया कि वास्तव में ये महासतियाँ ठीक कहती हैं। मैं मानरूपी हाथी के ऊपर चढ़ा हुआ हूँ, इसी से अब तक मुझे केवल ज्ञात नहीं हुआ तो अब. मुझको उचित है कि इस मानगज से उतर कर अलग हो जाना। ऐसा विचार के मिथ्याभिमान का त्याग किया, फिर क्या था तात्कालिक कैवल्य ज्ञान उत्पन्न हो गया। पाठक! जो अभिमान दशा को छोड़कर विनय गुण का सेवन करता है वह चाहे चक्रवर्ती हो या भिखारी, सब. साधुभाव में एक समान है। इस विषय में यदि चक्रवर्ती यह सोचे कि मैं तो पहले भी महा बुद्धिमान था, और अब भी सब का पुजनीय हूँ तो यह अभिमान करना व्यर्थ है। क्योंकि यह आत्मा संसार में सभी पदवियों का अनुभव अनेक बार कर चुका है। इसलिए संसार में धिक्कार के लायक एक भी प्राणी नहीं है, जो लोग अहङ्कार में निमग्न रहते हैं वे अपने पूर्वभवों का.मनन नहीं करते, नहीं तो उन्हें अभिमान करने की आवश्यकता ही न पड़े। ___ शास्त्रकारों ने मान की महीधर के साथ तुलना की है। पर्वत में जिस प्रकार ऊँचे ऊँचे शिखर होते हैं वे आड़े आ जाने से दुर्लध्य
SR No.002268
Book TitleGunanurag Kulak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay
Publication Year1997
Total Pages328
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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