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________________ ८७ श्री गुणानुरागकुलकम् हैं। पुरुषों के बजाय स्त्रियों को सद्गुणी बनना अत्यावश्यकीय है, क्योंकि पुरुषों के सारे जीवन का सुधार-भार स्त्रियों पर ही निर्भर है और प्रायः पुरुषों को बालक अवस्था से ही स्त्रियों के संसर्ग में उछरना (बड़ा होना) पड़ता है। अतएव पुरुषों के हृदय पट पर जितना प्रभाव स्त्रियों का पड़ता है, उतना दूसरे किसी का नहीं पड़ सकता। ____एक सद्गुणी स्त्री अनेक दुर्गुणी स्त्री-पुरुषों का सुधार बड़ी आसानी से कर सकती है। इस बात को अच्छी तरह समझने के लिए नीचे का दृष्टांत जरा ध्यान पूर्वक पढ़िये - गृहदक्षा-रानी का दृष्टान्त - किसी नगर में अरिमर्दन नामक राजा था। उसकी रानी का नाम सुविद्या था। वह बड़ी चतुर, पण्डिता, गृहकार्य, प्रबंध और व्यय उठाने में महादक्षा थी। जब उसके पुत्र का जन्म हुआ, तब राजा ने ज्योतिषियों को बुला कर ग्रह' आदि का विचार कराया। उन्होंने . पुत्र को बड़ा तेजस्वी, प्रतापी, ऐश्वर्यवान् आदि गुण वाला बताया। राजा को यह सुनकर विस्मय (आश्चर्य) हुआ और वह मन ही मन विचारने लगा कि, क्या इस समय संसार में दूसरे किसी का जन्म न हुआ होगा ? बस, इस मानसिक विचार को गुप्त रख कर राजा ने अपने दूतों को आज्ञा दी कि - जो मनुष्य इसी लग्न और मुहूर्त में उत्पन्न हुआ हो, उसको खोज करके ले आवो। वे दूर ढूँढते-ढूँढते किसी एक महादरिद्री कठियारे (लकड़हारे) को पकड़ लाये। राजा ने ज्योतिषियों की सभा करके पूछा कि इस मनुष्य का भी जन्म उसी लग्न में हुआ है, जिसमें कि राजकुमार का। फिर यह ऐसा दरिद्री क्यों है ? उन्होंने भाँति-भाँति के उत्तर दिये, परन्तु राजा को
SR No.002268
Book TitleGunanurag Kulak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay
PublisherRajendra Pravachan Karyalay
Publication Year1997
Total Pages328
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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