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शोधनिक
अशुद्ध
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गध्यक्ष च्छिन्दन्ति ज्ञानं यदा जाते.
18
37 46
गध्यक्षज छितिद जानं जदा यातं रीष्यते मान्य तद्वण किंच प्रत्य
रिष्यते
सामान्य
50
तद्द्व
5)
किंच-प्रत्य.
57
रोध
बोध -
66
70
योप्यतां कशाखा
71
संस्ष्टो
72
च संसर्ग दशपायः विवेत् वधिम्
92
119 141
वाद
आत्मास्पन्दः
योग्यता नेकशखा संस्पृष्ठो न च संसर्ग दशापायः भावयेत् विधिम् स्वाद मात्मस्पन्दः पर्वणे तोच्चिचार प्रतिपाद प्राणिरूप भिहित प्रयुक्त स्थैर्य दुर्घट प्रदीप
गर्वे
168 176 180 211 237 305
तोच्चि चार तिपाद णिरूप भहित प्रयुच्त
स्थैर्या
311
350
घंट प्रदोप