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________________ 11 342 32 342 316 8c 285 317 217 205 639 517 277 343 596 449 183 480 506 332 246 344 217 217 125 66 अथ सन्तान अथानुवृत्ति अथापि नित्य अथापि मध्ये अथापि व्यक्ति अथो तथागताः अर्थक्रियासमर्थ अर्थपूर्णमपूर्ण अर्थप्रकरण अर्थप्रकरणाधीन .. अदुष्टकारणो अदृश्यमानमपि । अदृश्यो भूत अदृष्ट्वा चाद्य अद्यत्वे व्यव. अधिकार्यनु . अध्याहृतवकार अनन्तस्वेऽपि अनन्वितार्थमेव • अनपेक्षिततत्तुल्य अनागतविशिष्टं . अनादिना प्रब अनादिश्चैव । • अनादौ संसारे अनिष्यमाणे अनश्वरस्वभावे अनेकक्षणयोगे अनुमेयत्वमेव अनुमानिरपेक्ष अनिष्ठं तत् अनुवृत्तिहिं अनुष्ये हि .. 356 403 402 . 128 565 572 210 506 309 473 403 424 12 306 319 278 540 357 अनुसन्धीय अनेकान्तिकता अन्तर्मतद्वय अन्तर्मज्जास्थि अन्तस्संजल्पो अन्तस्सुस्वादि अन्त:करण अन्त्यसंख्येय अन्मकिचन अन्यत्रैव वि अन्यथैव प्रव अन्यथैव मति अन्यप्रवृत्ती अन्ये धात्वर्थ अन्येऽपि सर्वे अन्ये पूर्वापरी अन्येषु तु अन्यैरप्युप अन्योन्यसङ्गति अन्योपनीत अन्वयव्यति अन्वयव्यति अन्वयस्यापरि अवियोऽनन्वि अन्वित प्रति अन्विताभि अन्वीयमान अपत्यस्यैव अपमृत्योरप अपरंतु न अपि चास्मन्मते अपितु ज्ञात्य 86 296 66 59 261 140 389 84, 123 315, 403 566 63 218 210 215 447 307 209 42 570 32 100
SR No.002266
Book TitleNyayamanjari Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK S Vardacharya
PublisherOriental Research Institute
Publication Year1983
Total Pages794
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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