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________________ पश्यत: श्वेत पाके ज्वालेव पुरुषश्च क पुरुषस्य दर्शनार्थ प्रकृतेर्मांस्ततो प्रकृते सुकुमारतरं प्रतिषेधेऽपि समानो प्रत्यक्षानुमानोप प्रमाणेन खल्वयं प्रमादाऽशक्तिजाः प्रवर्तते वटुर्ना प्राकूशब्दाचाशी प्रार्थ्यमानं फलं प्रोक्षिताभ्यामूलख फलं च पुरुषार्थत्वात् बुद्धि सिद्ध तु बुद्धि सिद्ध तु बुद्धि सिद्धि: बृहस्पतिरिद्राय भवन्ति के चित् भावनैव हि भावार्थाः कर्म भूतभाग्युपयोग महायज्ञैश्च मा विनीनशः मूलप्रकृतिर मृत्तिकेत्येव यजमान संमिता यज्याद्यर्थश्चातोव यत्राकृतिस्तत्र यत्पुनरनुमानं यथा कल्माष 186 190 80 390 390 392 674 552 135 228 132 479 456 590 80 405 662 492 237 85 101 115 464 459 323 391 465 80 85 48 628 33 Coo 8 सिम यदन्यरूपं यदि ति गो यदि वा नैव यदि साधुभिरेवेति यमदृष्ट्वा पर यश्व व्याकुरुते यस्मिन्नेव हि यस्य गुणस्य यस्यानवयवः यावज्जीवं दर्श यावन्तो यादृशा रक्षोहागमलध्व रंगस्य दर्शयित्वा रजत गृह्यमाण इन चित लिप्सा लक्षण लौकिकपरीक्षकाणां वर्णा एवावसीयन्ते वर्णाः किन्नु क्रमों वर्णाः प्रज्ञासामध्य वविदृद्धिनिमि वाक्पाणिपाद वाक्यार्थप्रत्यये वाग्रूपता चेत् तदुक्त वाचकत्वाविशेषेऽपि वायुर्वै क्षेपिष्टा विज्ञानमानन्द विदुषां वाच्यो विधिभावना विलक्षणोप 453 508 71 167.179 228 689 261 - 297 62 150 456 147 233 392 337 54 112 569 172 169 147 393 398 190 477 157 226 472 485 579 99 80
SR No.002266
Book TitleNyayamanjari Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK S Vardacharya
PublisherOriental Research Institute
Publication Year1983
Total Pages794
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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