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________________ प्रमाणानुक्रमणी 42 456 351 447 476 447 458 237 504 230 240 91 55. 79 61 71 131 393 13 अग्निहोत्रं जुहु अङ्गुष्ठमात्र अनधीत्यद्विजः अनादिनिधन अनिष्टा चैव अनेकजन्म अन्तो नास्त्यप अन्यथैवाग्नि अपेक्षणेऽपि अप्रत्यक्षोपलभ अप्रामाण्य त्रिधा अभिधां भावानां अमुना क्रमेण अयुतसिद्धानां अर्थक्रियासमर्थ अर्थवत्त्वं न चेत् अल्पीयसापि असाधुरनुमानेन आकृतिस्तु शब्दाः अन्यभाव्यं तु आहिताग्निरप आहुर्विधातृ उपसर्गाः क्रिया उत्तरोत्तरापाये ऋणानि त्रीणि 490 616 98 582 एकस्यार्थस्वभा एकोपलभ एकश्शब्दः कर्मणा यममि एतस्यैव रेव कर्मण्यग्न्याख्यायां . कर्मण्यपि जैमिनिः कल्प्यते कल्प्यतां कृतार्थ प्रति कोऽन्यो न दृष्टः क्रमः क्रमवतां गवि सास्नादि गुणवचन - गौरित्येव हि ग्राह्यगाहकसं चपेटापरीहा चावाले कृष्ण चित्रत्वाद्वस्तुनः चोदनालशणः जरामर्यव वा जातिमेवाकृति . जायमानो ह वै जायते द्रध्यात्म एकप्रत्यव एकमेवाद्वितीय 8 299 234 167. 179 224 47 236 230 465, 471 169 480 236 480 495. 132 235 33 112 442 47 445 67 8d 441 12 465 442
SR No.002266
Book TitleNyayamanjari Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK S Vardacharya
PublisherOriental Research Institute
Publication Year1983
Total Pages794
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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