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________________ 643 662 711 670 659 666 386 546 599 540 94 408 542 635 693 689 643. 703 677 592. भ तदर्थान्तर न हेतुस्साध्य निग्रहप्राप्तस्य नित्यमनित्यभावा नित्यानित्यत्व निर्दिष्ट कारणा पक्षप्रतिषेधे पर्षत्प्रतिवादि पुनरुत्पत्ति पौर्वापर्यादयो प्रकृतादर्थात् प्रतिज्ञातार्थप्रति प्रतिज्ञाहानिः प्रतिज्ञाहेतू प्रतिज्ञाहेत्वो प्रतिदृष्टान्तधर्मा प्रतिपक्षात्प्रकरण प्रतिषेधं सदोष प्रतिषेधविप्रति प्रतिषेधानुप प्रतिषेव्ये नित्य प्रतिषेधे हि प्रदीपोपादान प्रमाणतर्क प्रर्वतनालक्षणा प्रवृत्तिर्वाग्बुद्धि प्रतिदृष्टान्तहेतुस्वे प्रयत्नकार्या प्रधृत्तिदोषजनितो प्रागुत्पत्तः कारणा प्राप्य साध्यमप्राप्य वाधनालक्षणं 695 418 7 692 . 683 679 552 686 081 661 674 674 662 355 700 बुद्धि रुपलब्धि यत्सिद्धावन्य यथोक्तोपपन्न यमर्थमधिकृत्य यस्मात् प्रकरणा युगपज्ज्ञाना लौकिकपरिक्ष वचनविधातो वर्णक्रम निर्दै वाक्च्छलमेवोप विज्ञातस्य पर्षदा विप्रतिपत्तिर विमृश्य पक्षं : वीतरागजन्मो शब्दार्थयोः पुन संभवतोऽर्थस्या स चतुर्विधः स प्रतिपक्ष समानानेकधर्मों सर्वतन्त्राविरुद्ध संध्यदृष्टस्येतरेण सध्यभिचार साधर्म्यवैधा साधर्म्यवैधाभ्याम् साधर्म्यवैधोत्कर्षा साधास्तुल्य साधात्संशय साधादनित्यसिद्धेः साध्यदृष्टान्तयो साध्यनिर्देशः साध्यसाधा साध्यातिदेशाच्च 639 545 602 522 671 545 377 .604 645, 65 651 646 669 673 657 596 415 413 657 671 429 658 655 427 659 669 653 554 567 655
SR No.002266
Book TitleNyayamanjari Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK S Vardacharya
PublisherOriental Research Institute
Publication Year1983
Total Pages794
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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