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________________ 17 13 255 6 संस्कारानुकृतेः सोऽपि 533 | सर्वशाखाप्रत्ययं 620, 623 स एव, चोभयात्माऽय 312 सर्वस्यैव हि शास्त्रस्य स एष यज्ञायुधी 651 | सर्वेभ्यो ज्योतिष्टोमः 622 स एष वाव प्रथमः 671 | सर्वेभ्यो दर्शपूर्णमासौ 622 स चतुर्विध: 335 स वेद ब्रह्म 701 सत: परमदर्शनं 569 | सव्यापारप्रतीतत्वात् 184 सति इन्द्रियार्थसम्बन्धे 260 सव्यापारमिवाभाति 40 सत्यं यत् तत्र सा जातिः 255 स संज्ञां याति भगवान 636 सत्यकामः सत्यसंकल्पः 507 स सर्वोऽभिहितो वेदे 647 सत्यासत्यौ त यो भावी 255 सहस्रयुगपर्यन्तं 490 सत्संप्रयोगे पुरुषस्य 141,259,263 | सहोपलं भनियमात 198 सदप्यग्राह्यरूपत्वात् . सांख्यं योगः पञ्चरात्रं 636 सदेव सौम्येदमने साऽऽत्मनोऽपरिणामो वा . 131 स द्विविधः दृष्टादृष्ट 30, 335, 609 | सा देशस्याग्नियुक्तस्य 337, 406 सद्विषयं प्रत्यक्षं 359 सादृश्यतोऽग्न्यादि 393 सन्निवेशादि तत्तस्मात् 193 साध्यसाधनशब्देन ___72 स पश्चादपि तेन स्यात् . 237 साध्यसाधात्तद्धर्म 305 . समयाध्युषिते होतन्थे . 651 सा नित्या सा महानात्मा 255 समर्थः पदविधिः 19 सान्वयव्यतिरेकाभ्यां 84 समवाये अभावे च 139 सामान्यं तच्चिकीर्षा 392 .समस्तक्षयजन्मभ्यां 511 सामान्यविशेष 18 समानविषयत्वे च 92 सामान्यविषयत्वं च 251 सम्बद्धं वर्तमान च 277 सिद्धं यागधिष्ठातृ 493 - सम्बन्धस्निप्रमाणकः - 223, 601 | सिद्धे शब्देऽर्थे 516 सम्बन्धिभेदात्सत्तैव 255 | सुखदु:खाभिलाषादि 195 सम्यगर्थे च संशब्दः 261 | सुप्तिङन्तं पदं 105 सर्वजिता वै देवाः 673, 677 | सूर्य चक्षुर्गमयतात् 560 सर्वथा सदुपायानां 65 | सृण्येव झर्भरी 6:0,685 सर्वमायुरेति 700 | सृष्टिस्थित्यन्तकरणी 636 सर्वविज्ञानविषयं 419 | सैषा त्रयी विद्या 615, 625 सर्ववेदान्तप्रत्यय 681,583 | सोऽयमाथर्वणः. 46* 616
SR No.002265
Book TitleNyayamanjari Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK S Vardacharya
PublisherOriental Research Institute
Publication Year1969
Total Pages810
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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