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________________ 627 842 463 680 0. 29 अप्रामाण्यमवस्तुत्वात् अभिगमनोपादान अभिधानप्रसिध्यर्थं अभिधेयप्रयोजन अभिलापसंसर्ग अभतानपि पश्यन्ति अभ्युत्थानमधर्मस्य अमावास्यायां अमृते जारजः कुण्डा अम्यक्सात इन्द्र भयथार्थः प्रमाणो अयमेवेति यो ह्येषः अरुणया पिङ्गाक्ष्या अर्थक्रियाऽनुरोधेन अर्थक्रियासमर्थं यत् अर्थात्तुल्यार्थतां प्राप्य अर्थान्तराऽनपेक्षत्वात् अथान्तरे प्रमाणत्वं अर्थान्यथात्वहेतूथ अर्थेनात्मप्रत्यायन अर्थेऽनुपलब्धे अर्थैकत्वादेकं वाक्यं अर्थोपयोगेऽपि पुन: अहे कृत्यतृचश्व अल्पीयसा प्रयत्नेन अवयवी जाति: अवलगुजः सोमराजी अविद्यमानसंयोगात् अवेद्यवेदकाकारा अश्वप्लुतं वासव अश्वालंभं गवालंभ 421 | अष्टकालिङ्गाश्च 105 637 | अष्टचत्वारिंशद्वर्ष 96 | असंभवद्विसंवाद 483 13 | असंभवाद्विसंवादः 235 असद्वा इदमन 6 271 असभुवि 644 | प्रसिद्धेनैकदेशेन 871 अस्ति ह्यालोचनाजानं 251 अस्त्युत्तरस्यां दिशि . 560 अस्थानात् 560 अस्मदादौ प्रसिद्धत्वात् 143 | अप्रत्ययविज्ञेयः . 699 62 . आ. 16 | आगोऽष्टाकपाल: 39:568,6:00 432 | आत्मा च लाघवं नी: 17:) 336 आत्मा ज्ञातव्य: 5,700 615 | आत्मेन्द्रियमनोऽर्थ 131 | आथर्वणो वै ब्रह्मणः , 617,621 516 आदित्यः प्रायणीय: 674 61 आदित्यो यूपः. 66, 676 515.1569 237 | आनन्तर्यविसंवादः ( 233 | आनन्दो ब्रह्म 529 आन्वीक्षकी यी वार्ता 9 91 भाप्तः खलु साक्षात् 399 605 | आप्तवादाविसंवादात् 40,111 260 | आपोपदेशः शब्दः 30, 168,335, 459 37-1, 396 336 भाम्नायविधातृणां 646 | माम्नायस्थ क्रियार्थ . 667 73
SR No.002265
Book TitleNyayamanjari Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK S Vardacharya
PublisherOriental Research Institute
Publication Year1969
Total Pages810
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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