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स्तोत्र-रास-संहिता
पओयण तुहुं जिण पासपरोवयार करणिकपरायण । सत्तुमित्त सम चित्तवित्तिनयनिदिअसममण, मा अवहीरिअजुग्गओविमइं पासनिरंजण |२२|| हउँ बहुविहिदु हतत्तगत्तुतुहं दुहनासणपर, हउं सुयणह करुणिक्क ठाणु तुहुं निरुकरुणाकरु । हउं जिण पासअसामिसालु तुहं. तिहुअणसामिअ, जं अवहीरहि मई झखंत इय पास ! न सोहिअ ॥२३|| जुग्गाजुग्ग विभागनाहनहुजोयहितुहसम, भुवणुवयारसहावभाव करुणारससत्तम । समविसमहकिं घणु नियइ भुविदाहुसमंतउ, इय दुहबंधव पासनाह मइं पाल थुणंतउ ||२४|| नयदीणहदीणय मुएवि अण्णुविकिविजुग्गय, जं जोइविउवयारुकरहिउवयारसमुज्जय । दीणह दीणुनिहीणुजेणतुहनाहिण चत्तउ, तो जुग्गउअहमेव पासपालहिमइं चंगउ ||२५|| अहअण्णुविजुग्गयविसेसुकिविमण्णहि दीणह, जं पासिविउवयारुकरइ तुहनाह समग्गह । सुच्चिअकिल कल्लाणुजेण जिण तुम्ह पसीयह, किं अण्णिण तं चेव देव मा मइं अवहीरह ||२६|| तुह पत्थण नहु होइ विहलु जिण ! जाणउ किं पुण, हउं दुक्खिउ निरुसत्तचत्तदुक्कहु उस्सुयमण । तं मण्णउ निमिसेण एउ एउविजइ लब्मइ, सच्चं जं भुक्खियवसेण किं उंबरु पच्चइ ! |२७|| तिहुअणसामिअ पासनाह मई अप्पुपयासिउ, किज्जउ, जं नियरूवसरिसु न मुणउबहु जंपिउ । अण्णु ण जिणजग्गितुहसमोविदक्खिन्नु दयासउ, जइ