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जयतिहुअण स्तोत्र
एणतुल्लजंजणियहियावहु, रम्मु धम्मु सो जयउ पास जय जंतु पियामहु ॥१५|भुवणारण्णनिवास दरिअपरदरिसणदेवय, जोइणिपूअणखित्तवाल खुद्दासुर पसुवय । तुह उत्तट्ठ सुनट्ठ सुट्ठ अविसंठुल चिट्ठहि, इय तिहुअणवणसीह पास पावाइं पणासहि ||१६|| फणिफणफारफुरंतरयण कर रंजिअ नहयल फलिणी कंदलदलतमाल निल्लुप्पलसामल । कमठासुर उवसग्गवग्ग संसग्ग अगंजिअ, जय पच्चक्खजिणेस पास थंमणय-पुर8िअ ॥१७॥ महमणुतरलुपमाणनेय वायावि विसंठुलु, नियतणुरवि अविणयसहावु आलसविहिलंघलु । तुहमाहप्पुपमाणुदेव कारुण्ण पवित्तउ, इय मइमाअवहीरिपासपालहिविलवंतउ ॥१८॥ किं किं कप्पिउणेयकलुणु किं किं वनजंपिउ, किं वनचिट्ठिउकिट्टदेवदीणयमविलंबिउ । कासुनकियनिप्फल्ललल्लिअह्न हिंदुहत्तई, तहवि न पत्तउताणु किंपि पइं पहु परिचत्तइं ॥१९|| तुहं सामिह तुहं माय बप्पु तुहुं मित्तपियंकरु, तुहुँ गइतुहं मइ तुहिंज ताण तुहुं गुरु खेमकरु। हठं दुहभरमारिअ वराउ राउलनिब्भग्गह, लीणउ तुह कमकमल सरणजिणु ! पालहि चंगउ ॥२०॥ पइंकिविकयनीरोयलोयकिविपावियसुहसय, कि वि मई मंतमहंत केवि किविसाहियसिवपय । किवि गंजिअरिउवग्गकेविजसधवलिअ भूअल, मई अवहीरहिकेणपाससरणागयवच्छल ! ॥ २१ ॥ पच्चुवयारनिरीहनाहनिफ्फण्ण