________________
श्री गौड़ीपार्श्वनाथ-स्तोत्रम्
१११
स्वर्ग समो मेडे आवास । दिवस विचारी इंडो घड्यो ततखिण देवल ऊपर चढ्यो ॥३६|| शुभ लगन शुभ वेला वास, पव्वासण वेठा, श्रीपास । महिमा मोटी मेरु समान, एकलमिल वगड़े रहैवान ॥३७|| बात पुराणी मैं सांमली, स्तवन मांहि सूधी सांकली । गोठी तणा गोतरिया अछ, यात्रा करीने परने पछे ॥३८॥ (दोहा) विघन विडारम् यक्ष जगि, तेहनो अकल सरूप । प्रीत करे श्रीसंघ ने, देखाडै निज रूप ||३९|| गिरुओ गोडी पास जिन, आंपे अरथ मंडार । सांनिध करै श्रीसंघने, आसा पूरणहार ॥४०॥ नील पलाणे नील हय, नीलो थई असवार मारग चूका मानवी, वाट दिखावण हार ॥४१॥ (ढाल) वरण अढार तणो लहै भोग, विघन निवारे टाले रोग । पवित्र थई समरै जे जाप, टाले सगला पाप संताप ||४२|| निरधन ने घरि धन नो सूत, आप अपुत्रीयाने पुत्र | कायर ने सूरापण धरै, पार उतारै लच्छी बरै ॥४३॥ दोभागी ने दे सौभागः पग विणाने आपै पग । ठाम नहीं तेहने द्य ठाम, मनवांछित पूरे अभिराम ॥४४|| निराधार ने ये आधार, भवसागर उतारे पार । आरतियानी आरत मंग, धरै ध्यान ते लहै सुरंग ॥४५|| समय सहाय दीयै यक्षराज, तेहना मोटा अछे दिवाज । बुद्धि हीण ने बुद्धि प्रकाश, गूगाने दे वचन विलास ॥४६|| दुखिया ने सुखनो दातार, भय मंजन रंजण अवतार ।