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२६ अरिहंत-शब्द दर्शन
जैन-दर्शन और अन्य दर्शनों की ईश्वर सम्बन्धी मान्यता में इतना ही अन्तर है कि अन्य दर्शन ईश्वर को जगत् के पहले रखते हैं और जैन दर्शन ईश्वर को जगत् के अन्त में रखता है। अन्य दर्शनों का मानना है कि परमात्मा दुनिया को बनाते हैं। जैन दर्शन कहता है-परमात्मा जगत् को पार कर जाते हैं। जैन दर्शन के अनुसार परमात्मा कारण नहीं, परिणाम है। बीज नहीं जिससे सब पैदा होवें पर वे फूल हैं जो स्वयं खिलते हैं, खुलते हैं, प्रकट होते हैं और अन्य को खिलाते हैं, प्रगट करते हैं।
सर्व दर्शनों की ईश्वर सम्बन्धी विविध मान्यताओं से सम्बंधित समस्त प्रश्नों को. जैन दर्शन की परमात्मा सम्बन्धी निम्नोक्त मान्यता से पूर्ण समाधान मिल सकता है। . १. किसी भी प्राणी या जीव के अस्तित्व को एक तथ्य के रूप में स्वीकार करना
चाहिये। २. प्रत्येक जीवात्मा में आनंद है, ज्ञान, दर्शन, बल, वीर्य, पुरुषार्थ आदि गुणों .
की सत्ता है। ३. आत्मा स्वयं ही स्वयं के कर्म द्वारा स्वयं का सर्जनहार है, स्वयं ही ईश्वर है। ४. जीव जब कर्म-बन्धन से मुक्त होता है, तब वह अनंत ज्ञान, अनन्त दर्शन,
__ अनन्त वीर्य एवं अनन्त आनन्द प्राप्त कर सकता है। .... ५. आत्मा और परमात्मा में कर्म के अतिरिक्त और कोई अन्तर नहीं है। कर्म का
अन्तर हट जाने पर कोई भी जीव परमात्मा बन सकता है। . ६. एक बार. परमात्म स्थिति प्राप्त कर लेने पर जीव पुनः कभी संसार में नहीं
आता है।