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________________ ते भाषाना अभ्यासकोने साधनसामग्नीनी अवश्य अपेक्षा छ, एम सहज समजाय तेम छे. प्राकृतभाषानुं विज्ञान-मुख्य बे साधनोथी थइ शके. एक तो शब्दविज्ञान. बोजु धातुविज्ञान, जो के प्रयोगविज्ञान अने समासविज्ञान इत्यादि बीजा साधनो छे, परन्तु ते साधनोनी संस्कृत भाषाना विज्ञानथीज गतार्थता होवाथी अहीं ते साधनोनी गौणता समजवी. तेमां शब्दविज्ञानने. माटे अनेक महाशयोए करेल प्रयत्ननी प्रसादीरूपे प्राकृतरूपावली आदि देखाय छे. ते जोतां मालुम पडे छे जे-उपयोगी सर्वशब्दोना रूपो अने तेनी निष्पत्ति केवीरीते थाय छे ? ए.विषयनी संपूर्ण माहिती ते ते ग्रंथोमां विद्यार्थिवर्गने जेम संतोषकारंक निवडे, तेवी रीते बीलकुल छेज नही. जेथी प्राकृतभाषाना अभ्यासकवर्गने जेम सरलता थाय, तेवी रीते शब्दविज्ञान अने. साथे उपयोगी प्रचलित धातुओर्नु पण विज्ञान थाय, ते आ प्राकृतरूपमाला ग्रंथर्नु मुख्य प्रयोजन छे. ___आ ग्रन्थनी रचना करनार प्रस्तुत लेखकना महापरमोपकारि शिरोमणि-चारित्रादि गुणोने द्धि पमाडनार--उत्तमब्रह्मचर्यादि लोकोत्तरगुणोने धारण करनार-जंगमकल्पतरु-कलिकाले श्रीगौतम गुरुसमान-श्रीजैनेन्द्रशासनतीर्थरक्षणपरायण-परोपकारशील--भावकरुणाजनिधि--लेखकनाआत्मोद्धारक-पूज्यपाद-प्रातःस्मरणीय-- श्रीस्थानांगोक्तपश्चातिशयधारक-श्रीपरमगुरुवर्य-तपोगच्छाचार्य-श्रीमद्विजयनेमिसूरीश्वरजीना-शिष्यरत्न-पन्न्यासजी-श्रीविज्ञानविजयजोगणीना-शिष्य-मुनिरत्न श्रीकस्तूरविजयजी महाराज छे-के जेओए प्राकृतभाषानुं विज्ञान सारं पास करेल छे. तेओए आ ग्रंथमा नीचे जणावेल विषयो दाखल करैल छे.
SR No.002256
Book TitlePrakrit Rupmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturvijay
PublisherVadilal Bapulal Shah
Publication Year1926
Total Pages340
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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