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________________ तात्पर्य ए के-आपणा जैनतस्वोनी अपूर्व फिलोसोफीने जणावनार पूज्यतम पंचांगीसमेत पिस्तालीश आगमोमां तो शुं,पण ते शिवायना उपदेशपद पंचाशक-धर्मसंग्रहणी-उपदेशरह स्य-गुरुतत्वविनिश्चय-धर्मरत्नप्रकरण-इत्यादि पूर्वाचार्य भगवंतप्रणीत ग्रंथोमां घणोज भाग प्राकृतमिश्र देखाय छे. जेथी साबीत थाय छे के-प्राकृतभाषा ए जैन साहित्यनो एक पायो छे, एम तेनो विशेष प्रचार ज सिद्ध करी आपे छे. साथे साथे ए पण जणावq व्याजबीज छे जे-आजथी बहुज पूर्वना प्राचीनकालमां भारतवर्षीय प्रजानी मुख्य मूलभाषा प्राक. तज हती, एम ते भाषानी "प्रकृतिः स्वभावः तस्मादागतं पाकृत" ए व्युत्पत्तिज सचोट जणांवे छे.. कालानुभावशी प्राकृतभाषाना साधनोनी छिन्नभिन्न दशाथी ते भाषानो अभ्यास मंद थवा लाग्यो, अने संस्कृतभाषानी साधनसामग्रीना विशेष सद्भावे ते भाषानो अभ्यास वधवा लाग्यो.जेथी कलिका. लसर्वज्ञ पूज्यपाद आचार्यश्री हेमचंद्रसूरीश्वरजीमहाराजे पण स्वोपज्ञसिद्धहमशब्दानुशासन व्याकरणमा पहेला सात अध्यायो संस्कृतना,अने छेवटे प्राकृतनोआठमो अध्याय दाखल कयों. त्यां सात अध्यायोनी साथे आठमाअध्यायनी संगति जणाववा माटे तेओश्रीए आठमा अध्यायनी शरुआतमांज"प्रकृतिः संस्कृतं तत्र भवं तत आगंतं चा प्राकृतं, संस्कृतानन्तरं प्राकृतमधिक्रियते" आ व्युत्पत्ति कहेली छे. परन्तु प्राकृत भाषानी नैसर्गिक व्युत्पत्ति जे उपर जणावी, तेज छे. प्राकृतभाषापरत्वे उपर कहेलु विवेचन एज जणाघे छे, जे-ते भाषा जैन सिद्धान्तोमां मोटे भागे बहु मानपात्र थयेली छे. जेथी तेनो अवश्य अभ्यास करवोज जोइए.
SR No.002256
Book TitlePrakrit Rupmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturvijay
PublisherVadilal Bapulal Shah
Publication Year1926
Total Pages340
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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