________________
प्रकाशकीय
'भरतबाहुबलिमहाकाव्यं' श्री पुण्यकुशलगणि द्वारा रचित महाकाव्य है। इसकी पंजिकायुक्त एक खण्डित प्रति तेरापन्थी शासन संग्रहालय में है । एक प्रति आगरा में विजयधर्मसूरि ज्ञान मन्दिर में है, जिसमें पंजिका नहीं है । प्रस्तुत- सम्पादन दोनों प्रतियों के आधार पर हुआ है । खण्डित श्लोकों की पूर्ति मुनि श्री नथमल जी ने की है। इसका हिन्दी अनुवाद अत्यन्त परिश्रम के साथ मुनि श्री दुलहराज जी ने किया है । अद्यावधि अप्रकाशित इस काव्य को प्रकाशित करने का सौभाग्य जैन विश्वभारती, लाडनूं को प्राप्त हो रहा है, यह हर्ष का विषय है।
___ आशा है प्रथम बार प्रकाशित इस काव्यकृति का विद्वान् स्वागत करेंगे।
दिल्ली .. कार्तिक कृष्णा १५,
.
श्रीचन्द्र रामपुरिया
निदेशक पागम एवं साहित्य प्रकाशन
२०३१ ..
(२५०० वा महावीर निर्वाण दिवस)