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जैन दर्शन में सम्यक्त्व का स्वरूप. ५६. सम्यक्त्व सप्ततिकावृत्ति-देवेन्द्र ५७. सम्यत्क्व सप्ततिका टीका-शिवमंडनगणि, ग्रंथान ३५७. .. ५८. सम्यक्त्व सप्ततिका बालावबोध-रत्नचंद्र गणि संस्कृत, सं. १६७६ ५९. सम्यक्त्व सप्ततिकावचूरी-कर्ता-अज्ञात ६०. सम्यक्त्व संभव-जयतिलकसूरि ६१. सम्यक्त्व सार-कर्ता-अज्ञात ६२. सम्यक्त्व सार वृत्ति-संघतिलकसूरि ६३. सम्यक्त्व सारकुलक-विनयसागरगणि ६४. सम्यक्त्व स्तव-२५गाथा. कर्ता-अज्ञात : ६५. सम्यक्त्व स्तव-अवचूरी-मुनिमेघ (शिष्य.. कमल संयम ) ६६. सम्यक्त्व स्तव अवचूरी-गजसार, संस्कृत, १५६१. ६७. सम्यक्त्व स्तोत्र ६८. सम्यक्त्वस्वरूप ६९. सम्यक्त्वस्वरूप -१०४ गाथा, जिनचंद्रगणिं , ७०. सम्यक्त्वस्वरूप संबोधन-पूज्यपाद ७१. सम्यक्त्वस्वरूप संबोधन टीका-प्रभाचंद्र ७२. सम्यक्त्वस्वरूप स्तव-२५ प्राकृत गाथा. ज्ञानसागर के शिष्य
(प्रकाशित प्रकरण रत्नाकर, भाग-२ भीमसी माणिक ) ७३. सम्यक्त्वस्वरूप स्तवन-देवेन्द्रसूरि, २५ गाथा ७४. सम्यक्त्वस्वरूप स्तषन टीका-शिवमंडन ७५. सम्यक्त्वस्वरूप स्तवन टीका-अज्ञात ७६. सम्यक्त्वस्वरूप गर्भितवीर स्तव ७७. सम्यक्त्वालंकार-विवेकसमुद्र गणि ७८. सम्यक्त्वोपादानविधि-२९ गाथाएं, मुनिचंद्र