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________________ अध्याय ३ २०९ • श्रद्धाशील पुरुष के लिए कहा है कि ऐसे पुरुष को तप का, आचार का और शरीर का भी क्या काम है ? श्रद्धा तो सभी में होती ही है । संसार के प्रत्येक मनुष्य को श्रद्धा तो होती ही है, परंतु जिसकी जैसी श्रद्धा होती है वह वैसा ही गिना जाता है ।' ___. ब्रह्म संबंधी जो श्रद्धा वह प्रकाशात्मक ऐसे सत्त्वगुण की पुत्री है और सात्विकी श्रद्धा ही सब का पालन करने वाली होकर शुद्ध जन्म को देने वाली है। तथा तप और ध्यानधर्म से भी श्रेष्ठ है। स्पष्ट है श्रद्धान्वित कर्म ही सफल होते हैं । ___जो पुरुष. दांभिक होते हैं उनमें श्रद्धा का भी अभाव होता है इसीलिए उनके द्वारा किये गए यज्ञ अयज्ञ होते हैं। बड़े बड़े सौ यज्ञों के यजन करने से भी उसके हवि का क्षय हो जाता है परंतु श्रद्धावान् जनों के कहे हुए धर्मों का क्षय होता नहीं है। ऐसा अनुशासन पर्व में कहा गया है। ___ भीष्मपर्व में ग्रन्थकार ने उल्लेख करते हुए कहा-हे श्रीकृष्ण ! जो श्रद्धा-युक्त हैं वे शास्त्रविधि का त्याग करके यजन करते हैं उनकी निष्ठा कैसी है ? सात्विकी, राजसी या तामसी ? . इस प्रश्न का उत्तर देते हुए श्रीकृष्ण कहते हैं कि "प्राणियों को • स्वभाव से उत्पन्न होने वाली वह श्रद्धा तीन प्रकार की है-सात्विकी, .. १. किं तस्य तपसा कार्य किं वृत्तेन किमात्मना। श्रद्वामयोऽयं पुरुषो यो यच्छद्धः स एव सः॥ वही, २६४-१७ ॥ २. श्रद्धा वैवस्वती सेयं सूर्यस्य दुहिता द्विजः। सावित्री प्रसवित्री च बहिर्वाङ् मनसी ततः॥ वही, २६४-८॥ ३. अपिक्रतुशतैरिष्टया क्षयं गच्छति तदधवि । न तु क्षीयन्ति ते धर्मा श्रद्दधान प्रयोजिता । वही, अनु०पर्व १२७-११॥ ४. ये शास्त्रविधिमुत्सृज्य यजंते श्रद्धयान्विताः। तेषां निष्ठा तु का कृष्ण सत्त्वमाहोरजस्तमः। वही, भीष्मपर्व ४१-१॥
SR No.002254
Book TitleJain Darshan me Samyaktva ka Swarup
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji
PublisherVichakshan Smruti Prakashan
Publication Year1988
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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