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________________ इत्तियमित्ते बोले म घट्ट मद्दलवाय हथलेव कंजिअं तंसि मोहावहीलं नाहत्तणु संसंति सावज्जं हिरणक्कस 'सच्चविय तइया इ लौटता है वीवाहणत्थ विवाह के लिए ऊसअतोरण तोरण सजाये गये = जमलज्जुण कोप्पर = खण्ड १ = = = = = II = = = = = = = = ॥ ॥ = = = = इतने मात्र से नष्ट करूं = = समूह मृदुंग बाजा सायारं स्वयं णिहु निःशब्द अद्धवह आधा मार्ग उप्पाय उत्पत्ति के समय सिंहणोत्थय स्तनों पर आच्छादित दो अर्जुन नामक वृक्ष मध्य पाणिग्रहण व्यर्थ (मांड की तरह) तुम ही हो मोह को त्याग दिया प्रभुता प्रशंसा करते हैं पाप-युक्त (१२६-१६७) अरिभुयं रुयइ जंति पहिहिं हिरण्याक्ष देखे गये उस समय पयडपडाय ओलिज्जमा उफललोय . दूहवेइ (१६८ - १९५) कुहिअं थोड भावलय फिट्टिस्सइ कप्पइ पयनवर्ग = अपहुत्त संठिय करणी महो अहि = वलन कयासो ओसावणि = = = = = - = = = = वियड - उरत्थल अट्ठ तइय-वयं अणायारे = पाठ ३ : लीलावती कथा (१-१०) = = = = = = = = शत्रु बनी हुई रोता है = निराकार में (आकाश में) असमर्थ रखे गए समान समुद्र मर्दन करना लपेटने वाले कुल्ला करना = जाती हुई आनन्दित = ध्वजा लगायी गयी मंडप सजाया गया लोकको चौगुना कर दिया दुःख देता है विनष्ट स्तुति प्रभा का घेरा नष्ट हो जावेगा कहते हैं नौ पद विकट वक्षस्थल की हड्डियों का समूह तीन पैर १९९
SR No.002253
Book TitlePrakrit Swayam Shikshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year1998
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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