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अंजणासुंदरीकहा
अंजणाअ चागो परिवेअमं य
पज्ज - संगहो
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१.
पवणंज एण
रुट्ठेणं । अदोसा ॥ १ ॥
सरिऊण मिस्सकेसी - वयणं चत्ता महिन्दतणया, दुक्खियमणसा विरहाणलतवियंगी, न लभइ विद्दाणलोयणा निद्दं । वामकरधरियवयणा, वाकुमारं विचिन्तन्ती ॥ २ ॥ उक्कण्ठिय त्ति गाढं, नयणजलासित्तमलिणथणजुयला । हरिणी व वाहभीया, अच्छइ मग्गं पलोयन्ती ॥ ३ ॥ अइतणुइयसव्वंगी, कडिसुत्तय-कडयसिढिलियाभरणा । भारेण अंसुयस्स य, जाइ महन्तं परमखेयं ॥४ ॥ ववगयदप्पुच्छ दुक्खं धारेइ अंगमंगाई | मे सुन्नहियया, पलवइ अन्नन्नवयणांई ॥५ ॥ पासायतलत्था चिय, मोहं गच्छइ पुणो पुणो बाला । नवरं आसासिज्जइ, सीयलपवणेण मिउ-महुर-मम्मणाए, जंपइ वायाए अइतणुओ वि महायस! तुज्झऽवराहो मए मुंचसु कोवारम्भं, पसियसु मा एव पणिवइयवच्छला किल, होन्ति मणुस्सा एयाणि य अन्नाणि य, जंपंती तत्थ अह सा महिन्दतणया, गमेइ कालं
फुसियंग ॥ ६ ॥ दीवणा ।
न कओ ॥ ७ ॥
निडुरो
होहि । महिलियाणं ॥८ ॥ दीणवयणाई । चिय बहुत्तं ॥ ९ ॥
प्राकृत स्वयं-शिक्षक