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व.कृ.
पढ + आव + माण
पढावमाण पढ + आव + अंत
पढावंत. पढ + आव + इ + अ = पढाविज कृ.- पढ + आव + इस्संत = पढाविस्संत निर्देश : इन सभी प्रेरक कृदन्त रूपों के पु, स्त्री. एवं नपुं. रूप बनाकर विशेषण
जैसे प्रयुक्त किये जा सकते हैं। इनके प्रयोग एवं नियम आप कृदन्त विशेषण पाठ में सीख चुके हैं। यथापढावणीआ गाहा = पढवाने योग्य गाथा । (स्त्री. वि. कृ). . पढावंतो पुरिसो = पढ़ाता हुआ पुरुष । (पु. व. कृ). . . . पढाविअं पोत्थअं = पढ़वायी हुई पुस्तक । (नपुं. भू. कृ) ....
पढाविस्संतो गंथो = पढ़ाया जाने वाला ग्रन्थ । (पु. भवि. कृ) नि. ९८ : प्रेरक कर्म वाच्य क्रियाएँ बनाने के लिए मूल क्रिया में आवि प्रत्यय
जोड़कर वाच्य के प्रत्यय जोड़े जाते हैं। उसके बाद विभिन्न कालों के
और पुरुष-बोधक प्रत्यय जोड़े जाते हैं जैसे:मू. क्रि. प्रे. प्र. वाच्य प्र. पु. बो. प्र. : प्रेरकवाच्य रूपः .. पढ + आवि + ईअ/इज्ज + इ = पढावीअई (व.का) पढ + आवि + ईअ/इज्ज + ई = पढाविजीअ (भू. का) पढ + आवि + - + हिइ = पढाविहिइ (भ. का) .
पढ + आवि + ईअ/इज्ज + उ = पढावीअउ (विधि) निर्देशः वाच्य क्रियाओं में भविष्यकाल में वाच्य प्रत्यय ई/इज्ज नहीं जुड़ते हैं।
(देखें, नि. 84) अतः पढाविहिइ में इनका प्रयोग नहीं है। नि. ९९ : (क) प्रेरणार्थक कर्म वाच्य कृदन्तों में वर्तमान कृदन्त में वाच्य प्रत्यय ईअ जुड़ता है
तथा भविष्य कृदन्त में इस्समाण प्रत्यय जुड़ता है । यथाव. कृ. -पढ़ + आव. + ईअ+माण . = पढावीअमाणो (पु)
भ. वृ - पढ + आव -+इस्समाण = पढाविस्समाणो (पु) (ख) अन्य प्रेरणार्थक कर्म वाच्य कृदन्त सामान्य प्रेरक कृदन्तों की भांति बनते हैं
(देखें,नि.९७) नि. १०० : (क)प्रेरक भाववाच्य सामान्य क्रियाएँ प्रेरक कर्मवाच्य क्रियाओं की तरह ही बनती
हैं (देखें, नि.९८)। (ख) प्रेरक भाववाच्य कृदन्त प्रेरक कर्मवाच्य कृदन्तों के समान ही बनते हैं (देखें,
नि. ९९)। ये कृदन्त नपुं. में ही प्रयुक्त होते हैं।
प.का)
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प्राकृत स्वयं-शिक्षक