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________________ पाठ संज्ञार्थक क्रियाएँ : शब्द उदाहरण वाक्य : अर्थ · अध्ययन आचरण कथन गर्जना ग्रहण करना चुनना दौड़ना नमन करना ९६ पच्चूसे अज्झयणं वरं अत्थि सो तस्स आयरणं पासइ केवलं कहणेण किं होइ सो पढणस्स गच्छइ सो पूणत्तो विरम जीवणस्स किं उद्देस्सो अत्थि तस्स कह सच्चं अत्थि अज्झयण आयरण कहण गज्जण गहण चयन धावण मरण नमण पालन करना पढण • पढ़ना कंपन पूयण पूजन बैठना : आसण नि. ६२ : इन शब्दों के रूप अकारान्त नपुंसकलिंग शब्दों की तरह सभी विभक्तियों में चलते हैं । == = = = शब्द रक्खण लेहण सयण सवण गमण जीवण . ६६ मरण पोसण कंपण (नपुंसकलिंग) अर्थ रक्षा करना लिखना सोना सुनना जाना जीवन प्रातः काल में अध्ययन करना अच्छा है । वह उसके आचरण को देखता है । केवल कहने से क्या होता है ? वह पढ़ने के लिए जाता है। 1 वह पूजन करने से अलग होता है । जीवन का क्या उद्देश्य है ? उसके कहने में सत्य है । प्राकृत में अनुवाद करो : उसने बादल की गर्जना सुनी। युवती पति का चयन करती है । तुम्हारा दौड़ना अच्छा नहीं है। दिन में पूजन करना अच्छा है। वह लेखन से धन इकट्ठा करता बाल में सोना हानिकारक है। शास्त्रों का सुनना हितकारी है । है। प्रातः निर्देश : इन संज्ञार्थक क्रियाओं (नपुंसकलिंग) के सभी विभक्तियों के रूप लिख कर अभ्यास कीजिए । प्राकृत स्वयं-शिक्षक
SR No.002253
Book TitlePrakrit Swayam Shikshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year1998
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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