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________________ विभक्ति अभ्यास हिन्दी में अनुवाद करो : सो ममं पासइ । अहं ताओ नमामि । तुम इन्दं नमहि। जीवा मा हणउ । ते बंधुणो खमन्तु । सो अज्ज अच्छरसं पासिहिइ। तुम्हे पावाणि मा करह । तं दुक्खं ताहि होइ। अहं हत्थेण पत्तं लिहामि । सा जीहाए फलं चक्खउ। पक्खी चंचुए अन्नं चिणिहिइ । तं वत्थं काण अस्थि । सेवआण किं अत्थि? अहं समणीण वत्थाणि दाहिमि । सो अन्नस्स धणं मग्गइ। अहं कवाडस्स कटुं संचामि। सिसू ममाओ बीहइ। अहं ताहिंतो पुष्पाणि गिण्हामि। रुक्खहिंतो पत्ताणि पडन्ति । सिप्पिहिंतो मोत्तिआणि जायन्ति । सा पेडिआहितो वत्थाणि गिण्हइ । ते मज्झ भायरा सन्ति । तानि पोत्थआणि काण सन्ति । अत्थ खत्तीणं रज्जं अस्थि । तं मोत्तिआण माला काअ अत्थि? तेस कायेस् पाणा सन्ति । मढेसुं छत्ता वसन्ति । अम्हे चंदिआए निसाए भमाओ। प्राकृत में अनुवाद करो : वे किसको पूछते. हैं ? मन्त्रियों को कौन देखता है? वह वाणी को सुनता . . है। वे आँसुओं को गिराती हैं । यह कार्य किसके द्वारा होता है ? वे आँखों ... से पुस्तक को देखते हैं। वह कुण्डलों से शोभित होती है। बच्चे घटनों • से चलेंगे। वह तलवार से हिंसा नहीं करेगा। ये कमल हमारे लिए हैं। प्राणियों के लिए अन्न है। यात्रा के लिए धन कहाँ है? यह धन सभा के लिए है। ये फल वैद्य के लिए हैं। मैं उन स्त्रियों से फूल लेता हूँ। गाय के थनों से दूघ झरता है। गलियों से कौन नहीं जाता है ? वे चूहों के छेद हैं। हम मिट्टी की गाड़ी देखते हैं। तकिये की रुई कौन निकालता है? सोने के मृग को किसने मारा? तुम इन खेतों के स्वामी हो। समुद्रों में जल है । तुम्हारी वाणी में अमृत है। कलि में सुगन्ध नहीं होती है। विषमता ... में सुख नहीं होता है। उसकी गहनों में आसक्ति नहीं है। खण्ड १
SR No.002253
Book TitlePrakrit Swayam Shikshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrem Suman Jain
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year1998
Total Pages250
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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