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.६ महाचार कथा नामक षष्ठं अध्ययनम् संबंध - पांचवें अध्ययन में एषणा समिति का विस्तृत विवेचन देकर गोचरी गये हुए साधु को किसी के द्वारा पूछा जाय कि महाराज आपका आचार कैसा है? तब साधुकहे कि हमारे गुरु महाराज उपाश्रय में बिराजमान हैं उनके पास जाकर हमारे आचार का ज्ञान प्राप्त करें। प्रश्नकर्ता गुरु महाराज से साध्वाचार विषयक प्रश्न का समाधान करते हैं। इस संबंध से अब महाचार कथा नामक अध्ययन का प्रारंभ करते हैं। महाचार कथा के उपयोगी शब्दार्थ :- (गणिम्) आचार्य (उज्जाणंमि) उद्यान में (समोसढं) पधारे हुए (रायमच्चा) राज्य प्रधान (निहुअप्पाणो) निश्चल मन से हाथ जोड़कर (भे) भगवंत (आयार गोयरो) आचार विषय ।।१-२।। (निहुओ) असंभ्रान्त (आइक्खइ) कहे ।।३।। (धम्मत्थ कामाणं) धर्म का प्रयोजन मोक्ष, उसको चाहने वाले (दुरहिट्ठिय) दुष्कर आश्रय करने योग्य ।।४।। (नन्नत्थ) दूसरे स्थान पर नहीं (एरिसं) ऐसा (वुत्तं) कहा हुआ (दुच्चर) दुष्कर (विउलट्ठाणभाइस्स) संयम स्थान सेवी ।।५।। (सखुड्डगविअत्ताणं).बालक एवं वृद्ध साधुओ को (कायव्वा) करना (अखंडफुडिआ) देश-सर्व विराधना रहित ।।६।। (जाइं) जिसे (अवरज्जइ) विराधता है (तत्थ अन्नेयरे) उसमें से एक भी (निग्गंथत्ताउ) निर्ग्रथ रूप से (भस्सइ) भ्रष्ट होता है।।७।। (अजाइया) अयाचित (दंत सोहणमित्तं) दांत साफ करने की सली भी ॥१४।। (भेआययण वज्जिणो) चरित्र में अतिचार से भयभीत ।।१६।। (अहम्मस्स) अधर्म पाप (समुस्सयं) बड़े दोषों का ।।१७।। (बिडं) पका हुआ नमक (उब्भेइम) समुद्रीनमक (फाणिअं) नरम
गुड़ (वओरया) वचन में रक्त ।।१८।। (अणुफासे) महिमा (अन्नयरामवि) किंचित् भी . (कामे) सेवे इच्छे (ताइणा) त्राता ।।२१।। (उवहिणा) उपधि की अपेक्षा से (ममाइयं)
ममत्वको।।२२।। (लज्जासमा) संयम अविरोधी।।२४।। (उदउल्लं)जलाद्र (निवडिआ) 'पडे हो ।।२५।। (तयस्सिए) उनकी निश्रा में ।।२८।। (जायते) उत्पन्न होते ही तेजस्वी (जलइत्तए) ज्वलन करने (अन्नयरं) सभी तरफ से धारयुक्त ।।३३।। (पाइणं) पूर्व दिशा में (पडिणं) पश्चिम दिशा में (अणुदिसामवि) विदिशाओं में भी (अहे) अधोदिशा में
|३४|| (भूआण) प्राणिओं को आघात करनेवाला (हव्ववाहो) अग्नि (पइव) दीपक ... (पयावट्टा) तापहेतु (अणिलस्स) वाउकाय के ॥३७॥ (तालिअंटेण) तालवृन्त, (विहअणेण) हिलाने से (वेआवेऊणं) हवा करवाना (वा) और ।।३८।। (उइरंति) उदीरणा करना ।।३९।। (इसिणा) ऋषि ॥४७।। (नियागं) निमंत्रित ।।४९।। (ठिअप्पाणो) निश्चल चित्त युक्त ।।५०।। (कंसेसु) कांसे के प्याले (कंस पाएसु) कांसे के पात्र में (कुंडमोएसु) मिट्टी के पात्र में ।।५१।। (मत्तधोअण) पात्र धोने का (छड्डणे) त्याग करने में (छिन्नंति) छेदते हैं ।।५२।। (सिया) कदाच (एअमटुं) इस कारण से ।।५३|| (आसंदी) मंचिका (पलिअंकेसु) पलंग में (मंच) खटिआ (आसालएसु) आरामकुर्सी (अणायरिअं)
श्री दशवैकालिक सूत्रम् - 89